Gita param shanti sutra

गीता परम शांति सूत्र

यहाँ इस श्रृंखला में हम गीता के 116 उन परम सूत्रों को देख रहे हैं जिनका सीधा सम्बन्ध कर्म - योग से है ।
आप यदि चाहें तो इन सूत्रों को एक जगह एकत्रित करके अपनें लिए गीता ध्यान माला तैयार
कर सकते हैं ।
आइये अब उतरते हैं अगले सूत्रों में ----------
ध्यायत : विषयां पुंस :
संग : तेषु उपजायते ।
संगात सज्जायते काम :
काम : कामात क्रोध : अभिजायते ॥
गीता 2.62

क्रोधात भवति सम्मोह :
सम्मोहात स्मृति विभ्रम :
स्मृति - भ्रंशात बुद्धि - नाश :
बुद्धि - नाशात प्रणश्यति ॥
गीता 2.63

गीता के इन दो सूत्रों को देखिये
जो कर्म योग की बुनियाद को दिखा रहे हैं ----------

बिषय के ऊपर जो मनन करता है .........
उसके मन में आसक्ति उपजती है ।
आसक्ति काम ऊर्जा का तत्त्व है जो कामना उत्पन्न करती है .......
कामना में पड़ी रुकावट ......
क्रोध की जननी है ।
क्रोध में सम्मोहन होता है .....
जो बुद्धि को सम्मोहित करके अज्ञान से ज्ञान को ढक देता है ॥

इस बात से अधिक स्पष्ट बात आप को और कहाँ मिलेगी ?
आप गीता से क्यों दूर - दूर रह रहे हैं ?
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एक बात जो बातों की बात है
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भोगी प्रभु से छुपता फिरता है
और
योगी प्रभु में बसता है
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===== ॐ =============

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प्रभु योगी में बस्ता है
सर्वस्य चाहं ह्रदिसन्नी विष्टो (गीता अध्याय १५/१५)

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