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Showing posts from August, 2021

श्रीमद्भागवत पुराण में ऋषि मैत्रेय का तत्त्व ज्ञान

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  भागवत पुराण में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सांख्य दर्शन के तत्त्व ज्ञान अर्थात प्रकृति - पुरुष , प्रकृति - पुरुष संयोग से सृष्टि - रचना को प्रस्तुत किया गया है ।  💐 इनमें से ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान पिछले अंक में दिया गया और आज आप मैत्रेय ऋषि के तत्त्व ज्ञान को दो स्लाइड्स के माध्यम से देख रहे हैं । मैत्रेय ऋषि का आश्रम गंगा द्वार ( आजका हरिद्वार ) गंगा के तट पर हुआ करता था । जब प्रभु श्री कृष्ण प्रभास क्षेत्र (आजका सौराष्ट्र ) में सागर तट पर सरस्वती के तट पर उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे थे , उस समय उनके साथ वहां मैत्रेय ऋषि भी थे। द्वारका सागर में लीन होने को है , यदुबंशी आपस में लड़ कर स्वर्ग सिधारते जा रहे हैं और प्रभु  अपनें गरुड़ रथ का इंज़ार स्वधाम जाने के किये कर रहे हैं , ऐसे समय में प्रभु उद्धव को तत्त्व ज्ञान दे रहे हैं । यहाँ प्रभास क्षेत्र का दृश्य थीक कुरुक्षेत्र के दृश्य जैसा ही है ; कुरुक्षेत्र युद्ध में गीता ज्ञान था और यहाँ सांख्य तत्त्व ज्ञान । यहाँ प्रभु मैत्रेय ऋषि को कहते हैं , आपके आश्रम में निकट भविष्य में विदुर जी आनेवाले हैं । आप इस

भागवत पुराण में सांख्य आधारित ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान 1-2-3

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 श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य दर्शन आधारित तत्त्व ज्ञान को यहाँ 03 स्लाइड्स में दिखाया जा रहा है। ब्रह्मा का तत्त्व ज्ञान मैत्रेय , कपिल , प्रभु श्री कृष्ण के तत्त्व ज्ञानों से भिन्न है । यहाँ महाभूतों से उनके तन्मात्रों की उत्पत्ति दिखाई गयी है और एक महाभूत दूसरे महाभूत को जन्म देता हुआ दिखाया गया है जो अन्यों से भिन्न है । आगे चल कर अन्य सत् पुरुषों के तत्त्व ज्ञानों को भी देखा जा सकता है । अब स्लाइड्स को देखें ⬇️ 7

श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 2

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 श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 1 में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल मुनि ( भागवत में ) कपिल मुनि सांख्य दर्शन में और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा व्यक्त सांख्य आधारित सृष्टि विकास सिद्धान्त की एक रूप रेखा दी गई है । इस अंक में सिद्धांतों के प्रसंगों का संक्षिप्त विवरण भी एक तालिका में दिखाया गया है । अब भाग - 2 में ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल (भागवत में ) , कपिल मुनि संख्यदर्शन में और  प्रभु श्री कृष्ण द्वारा व्यक्त तत्त्व ज्ञान को एक जगह एक स्लाइड में ढालने का यत्न किया गया है । आगे चल कर हम इन सिद्धांतों को बिस्तर से अलग - अलग भी देखेंगे । भागवत में ब्रह्मा अपने पुत्र नारद को यह तत्त्व ज्ञान दिए हैं । जब यदुकुलके लोग प्रभास क्षेत्र में सागर तट पर आपस में लड़ते हुए स्वर्ग सिधार रहे थे तब सरस्वती तट पर पीपल पेड़ के नीचे बैठे प्रभु श्री कृष्ण उद्धव जी को मैत्रेय ऋषि की उपस्थिति में सांख्य तत्त्व ज्ञान को दिए थे । उद्धव - कृष्ण वार्ता भागवत में 11.7 - 12.29 में 1030 श्लोकों में दी गई है जिसमें भागवत - 11.24 ,  सांख्ययोग है । प्रभु श्रीकृष्ण मैत्रेय ऋषि को कह रहे हैं , निकट भविष्यमें गंगा द्वार स्थ

श्रीमद्भागवत पुराण में सांख्य भाग - 01

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  श्रीमद्भगवद्गीता में सांख्य सम्बंधित 18 श्लोकों को देखने के बाद अब हम श्रीमद्भागवत पुराण के 18,000 श्लोकों में से उन - उन सन्दर्भों को एकत्रित करने का प्रयश कर रहे हैं जिनका सीधा संबंध सर्ग उत्पत्ति या सृष्टि विकास या तत्त्व ज्ञान से सम्बन्ध है । यहाँ भाग - 01 में एक तालिका में श्रीमद्भागवत पुराण में  ब्रह्मा , ऋषि मैत्रेय , कपिल मुनि और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा सांख्य योग सम्बंधित सन्दर्भों को दिखा रहे हैं । इन सत् पुरुषों द्वारा व्यक्त सांख्य योग विस्तार को आगे के अंकों में देखा जा सकता है।

सांख्य आधारित गीता के 18 श्लोकों का आखिरी भाग

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  श्रीमद्भगवद्गीता के 18 सांख्य आधारित श्लोकों की शृंखला का आखिरी भाग आज यहाँ निम्न स्लाइड के माध्यम से दिया जा रहा है । भारतीय हम लोगों की मानसिकता पिजड़े में बंद है ; हजारों लाखों लोगों में कोई एक उसे आज़ाद कराने की जिज्ञासा रखता है । इन जिज्ञासुओं में कोई विड़ला उसे आज़ाद कराने का यत्न कराता है और उन में से कोई कदाचित कामयाब भी हो पाता है। पतंजलि योग दर्शन और सांख्य दर्शन कहानियों का दर्शन नहीं , ये शुद्ध सिद्धान्त के दर्शन हैं । बहुत कम लोग हैं जो इन पर अपनी दृष्टि टिका पाते हैं और उनमें से सफल हुए , माया आवरण के परे हो जाते हैं और उसे देखमें की दृष्टि पा लेते हैं जिसके दर्शनार्थ माया ( प्रकृति ) का अस्तित्व बना हुआ है। आइये घडी दो घडी इस स्लाइड पर चित्त को रोकने की कोशिश करते हैं ⏬

गीता में 18 सांख्य आधारित श्लोक भाग 2 - 3

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 यहाँ हम और आप 72 सांख्य कारिकाओं की यात्रा पूरी करने के बाद अब गीता - यात्रा की अलमस्ती में हैं । कई माह पहले जब सांख्य दर्शन की 72 कारिकाओं को प्रस्तुत किया जा रहा था तब यह बात कही गयी थी कि बिना सांख्य दर्शन - कारिकाओं को समझे गीता , भागवत एवं अन्य धार्मिक ग्रंथों में दिए गए सृष्टि - विकास सिद्धान्त को ठीक - ठीक नहीं समझा जा सकता । ज्ञान वह जो अपने में पूर्ण हो अर्थात जिसको ग्रहण करने पर किसी प्रकार का संदेह - भ्रम नहीं उपजा चाहिए और अंतःकरण में एक शब्दातीत आनंद की अनुभूति होनी चाहिए । इस बुनियादी सिद्धान्त के आधार और हम गीता के ऐसे श्लोकों को पहले ले रहे हैं जिनमें या तो सांख्य शब्द आया हुआ है या फिर सांख्य के सिद्धांतों को कुछ बदलाव के साथ प्रस्तुत किया गया है। अब नीचे दी जा रही दो स्लाइड्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं और देखते हैं गीता क्या कह रहा है । ⬇️

गीता के 18 श्लोक जो सांख्य दर्शन आधारित हैं भाग - 1

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 सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष संयोग  सृष्टि रचना का आधार है । सांख्य की मूल प्रकृति तीन गुणों की साम्यावस्था है जो पुरुष ऊर्जा के ओरबुआव में विकृत हो उठती है और 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है । 23 तत्त्व और प्रकृति - पुरुष से सृष्टि - विकास होता है । 💐 गीता में अपरा और परा दो प्रकार की प्रकृतियों के संयोग से सृष्टि की उत्पत्ति बतायी जा रही है । अपारा के 08 तत्त्व हैं - पञ्च महाभूत + मन +बुद्धि +अहँकार और चेतना को परा प्रकृति बताया गया है । अभी स्लाइड में 18 श्लोकों में से प्रारंभिक कुछ श्लोकों को देखते हैं

गीता में सांख्य की झलक भाग 11- 12

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  श्रीमद्भगवद्गीता में सांख्य सिद्धांतों की एक झलक भाग : 11 - 12 में श्लोक : 13.21 - 13.24 + 15.16 + 18.13 - 18.14 में सांख्य सिद्धांतों की एक हलकी सी झलक आप निम्न दो स्लाइड्स में देख सकते हैं ।  यहाँ सांख्य सिद्धांतों को आधार बना कर कुछ प्रकृति - पुरुष के सम्बन्ध में बातें दी गयी हैं लेकिन ये पूर्णरूपेण सांख्य दर्शन के अनुसार नहीं हैं । उदाहरण > श्लोक : 15.16 में क्षर - अक्षर दो प्रकार के पुरुष बताये गए हैं लेकिन सांख्य में केवल एक पुरुष है जो अनादि और सनातन है । देह पूर्ण रूपेण प्रकृति है , केवल इसमें चेतन अंश पुरुष है । भागवत पुराण में कहा गया है कि देह में जीवात्मा को छोड़ शेष माया हैं। 💐 अब स्लाइड्स देखते हैं ⬇️

गीता में सांख्य शब्द भाग 9 - 10

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  श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय : 13 श्लोक 19 - 20 के सम्बन्ध में यहाँ 02 स्लाइड्स दी जा रही हैं । इन दो श्लोकों का सीधा संबंध सांख्य दर्शन से है जिनमें क्रमशः प्रकृति - पुरुष के मौलिक गुणों को बताया जा रहा है और यह भी बताया जा रहा है कि कार्य - करण प्रकृति मूलक हैं । सांख्य दर्शन में सर्ग उत्पत्ति सन्दर्भ में प्रकृति - पुरुष के अलावा तीन और शब्द ऐसे हैं जो हमारा ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हैं और वे हैं कार्य , कारण और करण । 💐नीचे दी जा रही दो स्लाइड्स को ध्यान से देखें और समझें जिनमें प्रकृति , पुरुष कार्य , दो प्रकार के कारण और दो प्रकार के करण को स्पष्ट किया जा रहा है । ।। ॐ ।।

गीता में सांख्य शब्द भाग 7 - 8

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  महर्षि पतंजलि 04 प्रकारकी सबीज या सम्प्रज्ञात समाधि बताते हैं ; वितर्क , विचार , आनंद और अस्मिता। अब जब आप और हम गीता गंगा में तैर रहे हैं तो क्यों आनंद सम्प्रज्ञात समाधि से दूर रहें ! जब वितर्क - विचार की सीमा चित्त पार कर लेता है तब उसका अगला कदम आनंद में होता है । आनंद ! वह जिसका प्रारम्भ तो कहीं दूर स्मृति में दिखता हो पर जिसका कोइ अंत कहीं न दिखे। 💐यहाँ हम गीता माध्यम से राग से वैराग्य और वैराग्य से कैवल्य तक की ऐसी यात्रा पर चल पड़े हैं जिसका कोई अंत नहीं और जिस यात्रा में उठा हर कदम आनंद और और आनंद में पहुँचाता चला जाता है । जितना तर्क - वितर्क करना हो , कर लें कोई कंजूसी करने की जरुरत नहीं , जितना विचार करना होकर लें और निर्विचार हो लें ,  यहाँ भी कंजूसी न करें क्योंकि इन दो की सीमा पार करते ही आनंद की सीमा दिखने लगती है तो .... अब निम्न स्लाइड्स पर चित्त को एकाग्र करने का वक़्त आ गया है और तर्क - विचार का आनंद लेते हैं ⤵️

गीता में सांख्य शब्द भाग 5 - 6

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  गीता में सांख्य शब्द का प्रयोग तो मिलता है लेकिन सांख्य के मूल सिद्धांत खोजने पड़ते हैं । कहीं - कहीं सांख्य के सिद्धांतों  की भी झलक मिलती रहती हैं लेकिन थीक वैसे वे नहीं होते जैसे सांख्य में हैं । सांख्य के सिद्धांतों को वेदांत दर्शन के आधार पर ढाल दिया गया है ।  💐 आगे चल कर जब हम गीता में सांख्य सिद्धांतों को देखेंगे तब यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जायेगी । अभीं तो हम उन श्लोकों को देख रहे हैं जिनमें सांख्य शब्द मिलता है  अब स्लॉड्स को देखें ⬇️

गीता में सांख्य शब्द का प्रयोग भाग 3 - 4

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  गीता में सांख्य शब्द का प्रयोग भाग - 3 , भाग - 4 गीता श्लोक : 2.39 अब हम गीता श्लोक : 2.39 में किये गए सांख्ये शब्द पर सोचते हैं ।  ध्यान रखना होगा कि गीता में माया , आत्मा - परमात्मा और प्रकृति - पुरुष शब्दों का प्रयोग किया गया है जबकि माया , आत्मा और परमात्मा वेदांत दर्शन के तत्त्व हैं और प्रकृति - पुरुष सांख्य दर्शन के मूल तत्त्व हैं । ⬇️ अब देखते हैं निम्न 02 स्लाइड्स को 

गीता नें सांख्य शब्द का प्रयोग भाग 1-2

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  श्रीमद्भगवद्गीत में सांख्य शब्द का प्रयोग भाग : 1 - 2 💐 पहले सांख्य दर्शन की 72 कारिकाओं से परिचय कराया गया था जिससे हमें मूल सांख्य सिद्धांतो का पता चल सके। अब हम श्रीमद्भगवद्गीत में सांख्य शब्द और सांख्य सिद्धांतों को देखने जा रहे हैं । 👌 इस प्रयास में पहले हम गीता के ऐसे श्लोकों को देखने जा रहे हैं जिनमे सांख्य शब्द का प्रयोग हुआ है । आगे चल कर इन श्लोकों के भवार्थों की भी देखा जाएगा और गीता में सांख्य सिद्धांतो के प्रयोग को भी देखेंगे ।  अब दो स्लॉड्स को ध्यान से देखते हैं 🔽

सांख्य में प्रकृति - पुरुष सार का अगला अंक

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  सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष सार भाग : 2 + 3 + 4 इस श्रृंखला के प्रथम भाग में ईश्वर कृष्ण रचित उपलब्ध 72 कारिकाओं में से उन 26 कारिकाओं की एक तालिका दी गयी है जिनका सम्बन्ध प्रकृति - पुरुष से है और साथ स्लाइड - 2 में कारिका - 3 का सार भी दिया गया है जो प्रकृति - पुरुष से सम्बंधित है । अब इन स्लाइड्स -  2 , 3 और 4 में शेष 25 कारिकाओं के सार को व्यक्त करने का प्रयाश हो रहा है । # ध्यान रखें और स्वयंकी स्थिति को भी निम्न के आधार पर समझें कि आप कहाँ हैं ? ◆ तीन प्रकारके ज्ञान - जिज्ञासु होते हैं ; पहले वे जो तोते की भांति रटना चाहते हैं , दूसरे वे जो निश्चयात्मिका बुद्धि से सत्य को समझते हैं । तीसरे वे हैं जो अनिश्चयात्मिका बुद्धि वाले हैं।  दूसरी श्रेणी उनकी है जो योग साधना में प्रश्न मुक्त बुद्धि से जुड़ते हैं या फिर अभ्यास से अपनीं बुद्धि को प्रश्न मुक्त कर लेते हैं । तीसरी श्रेणी उनकी है जिनकी बुद्धि प्रश्न , तर्क , वितर्क और अहँकार के कीचड़ से निकलना नहीं चाहती। पहली और तीसरी श्रेणी के लोग योग से इस लिए जुड़ते हैं जिससे वे स्वयं के उस स्वरुप को लोगों को दिखा सकें जो वे नहीं हैं । द

प्रकृति - पुरुष सम्बंधित 26 कारिकाओं का सार भाग - 1

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  प्रकृति - पुरुष सम्बंधित 26 कारिकाएँ कारिका : 3 का हिंदी में सार 

सांख्य का पुरुष क्या है ?

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 # सांख्य के अव्यक्त अति सूक्ष्म पुरुष को बुद्धि स्तर पर समझने के लिए देखें निम्न स्लाइड को ⬇️ ।। ॐ ।।

सांख्य दर्शन में प्रकृति भाग - 3

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सांख्य दर्शन में प्रकृति रहस्य भाग - 03 💐ईश्वर कृष्ण रचित सांख्य दर्शन की 72 कारिकाओं में 26 कारिकाओं का सीधा संबंध प्रकृति - पुरुष से हैं । ★इन कारिकाओं में प्रकृति से सम्बंधित पिछली दो स्लाइड्स में कुछ बातें देखी गईं और शेष बातों के लिए अब हम तीसरी स्लाइड को देखने जा रहे हैं । जड़ प्रकृति पुरुष की ऊर्जा के प्रभाव में आ कर ज्ञान प्राप्त करती है और अपनें 23 तत्त्वों और 07 भावों से मुक्त हो कर आवागमन से मुक्त हो कर अपनी मूल स्वभाव में लौट आती है । प्रकृति की मूल अवस्था 03 गुणों की साम्यावस्था है । प्रकृति से सम्बंधित यह आखिरी स्लाइड है , अगले अंक से हम पुरुष के सम्बन्ध में चर्चा करेंगे । 

सांख्य दर्शन में प्रकृति क्या है ?

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 # अभी आप सांख्य दर्शन में प्रकृति के सम्बन्ध में नीचे दी गयी स्लाइड में देख रहे हैं । आगे चल कर आपको इसी तरह सांख्य में पुरुष को भी देखेंगे । जब प्रकृति - पुरुष का बोध हो जाएगा तब प्रकृति - पुरुष संयोग से उत्पन्न 23 संर्गों को समझना आसान हो जाएगा ।  अब स्लाइड पर ध्यान केंद्रित करें ⬇️

सांख्य में प्रकृति - पुरुष भाग - 1

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  सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष रहस्य  ।। ॐ ।।

सांख्य में सत्कार्य बाद के 05 सिद्धान्त

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  सांख्य दर्शन में कार्य - कारण आधारित सत्कार्य बाद के 05 सिद्धांत 1 # असत् से सत्य की उत्पत्ति असंभव है... 2 # प्रत्येक कार्य में उपादान करण अवश्य होता है .. 3 # कार्य अपने उपादान कारण में होता है ... 4 # सामर्थवान कारण ही कार्य को उत्पन्न करता है ... 5 # कार्य - कारण एक वस्तु की दो अवस्थाएँ हैं.. <>अब स्लाइड को देखें ⬇️ ।। ॐ ।।

सांख्य में कार्य , कारण और करण के 03 मूल सिद्धांत

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  सांख्य दर्शन में कार्य , कारण और करण भाग - 04 कार्य , कारण और करण सिद्धान्त के 03 मूल सूत्र देखे यहाँ ⬇️ ।। ॐ ।।

सांख्य में कार्य , कारण और करण भाग : 03

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  सांख्य दर्शन में कार्य , कारण और करण ~~ भाग : 03 ~~ # पुरुष न कार्य है , न कारण है और न करण है । # प्रकृति कारण है । # 13 करण हैं ; 11 इन्द्रियाँ और बुद्धि +अहँकार  # मन , बुद्धि और अहँकार अंतःकरण हैं । # 05 ज्ञान इन्द्रियां और 05 कर्म इन्द्रियां बाह्य करण हैं। # बुद्धि , अहँकार और तन्मात्र कारण - कार्य   दोनों हैं । # पञ्च महाभूत केवल कार्य हैं । #शेष नीचे स्लाइड में देखते हैं ⬇️

सांख्य में कार्य , कारण और करण भाग - 02

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  सांख्य में कार्य - कारण  नीचे स्लाइड में मिट्टी , घड़ा और कुम्हाड के माध्यम से 02 प्रकार के कारण और कार्य को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया जा रहा है ।  आइये , देखते हैं इस स्लाइड को⬇️ ।। ॐ ।।