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गीता की यात्रा

भाग - 02 पिछले अंक में प्रभु की ओर रुख करनें के लिए स्थूल रूप में पांच बातें बतायी गयी अब हम यहाँ उन बातों में भक्ति को यहाँ ले रहे हैं ॥ भक्ति क्या है ? क्या गायत्री मंत्र का सुबह - सुबह स्नान कर के जप करना भक्ति है ? क्या सुबह गुरुद्वारे में पहुंचना भक्ति है ? क्या सुबह - सुबह शिव मंदिर में बेल पत्र चढ़ाना भक्ति है ? क्या देव स्थान - तीर्थ की यात्रा में भक्ति है ? क्या चाह की ऊर्जा से मंदिर जाना भक्ति है ? क्या द्वेष - ऊर्जा से मंदिर जाना भक्ति है ? भक्ति शब्द तो रहेगा लेकीन भक्ति की हवा वहाँ नही होती जहां ---- मन में राग हो ..... मन में संदेह हो .... मन में क्रोध हो .... मन में द्वेष भरा हो ..... मन में मोह हो ..... मन में कामना का निवास हो .... मन में लोभ हो ..... मन में अहंकार का डेरा हो ..... भक्ति है वहाँ , जहां ------ न तन हो ..... न मन हो .... बुद्धि हो , प्रभु पर स्थिर और ... रात - दिन एक पर नज़र टिकी हो .... इन्द्रियाँ साक्षी भाव में डूबी हों ..... राह - राह कर ह्रदय में एक लहर उठती हो जो ---- उस पार की एक झलक दिखलाती हो ..... जहां दो नहीं ; भक्त और भगवान् नहीं , मात्र .....