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गीता मर्म - 37

सांख्य कहता है :---- जो है , जिसको हम समझते हैं , जो ब्रह्माण्ड की सूचनाएं हैं , जितनें भी जीव हैं सब ......... प्रकृति - पुरुष के योग से हैं । तीन गुणों से प्रकृति है जो मनुष्य को भोग तत्वों के माध्यम से आकर्षित करती है और अनेक रूपों में चेतना , पुरुष है , जो जीव को धारण करती है ॥ सांख्य की यह बात गीता में कुछ इस प्रकार से दी गयी है :----- प्रभु जनित माया तीन गुणों से है । माया से माया में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है और ब्रह्माण्ड में पृथ्वी है तथा पृथ्वी पर जीव है एवं जीवों में मनुष्य एक ऐसा जीव है जिसके पास असीमित सोचनें की क्षमता है और इसलिए वह सब कुछ होते हुए भी परेशान है । आइये देखते हैं इस सम्बन्ध में गीता के कुछ सूत्रों को .......... सूत्र - 7.14 तीन गुणों से मेरी माया है जिसको पार करना इतना आसान नहीं है ॥ सूत्र - 7.13 माया में उलझा , मायापती नहीं हो सकता ॥ सूत्र - 13.20 प्रकृति - पुरुष सनातन हैं , प्रकृति में तीन गुण हैं , गुण भोग के आकर्षण हैं ॥ सांख्य परमात्मा को नहीं स्वीकारता , केवल चेतना तक इसकी पहुँच है और गीता- सांख्य में सब की मूल परमात्मा है ॥ आज सांख्य के मौलिक सू