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गीतामें दो पल -14

गीता श्लोक : 6.23 " दुःख संयोग वियोगम् योग सज्ज्ञितं " * गीता अध्याय - 6 में 47श्लोक हैं और श्लोक 6.35 - 6.36 में अर्जुन मन शांत रखनें के उपायों को समझना चाहते हैं । * गीता अध्याय - 6 उनके लिए उपयोगी है जो अभ्यास - योग से ध्यानकी गहराई में उतारना चाहते है । ** प्रभु योगकी परिभाषा किस तरह दे रहे हैं ? आप इस परिभाषा को आधार बना कर ध्यान में डूब सकते हैं । ध्यानका प्रारम्भ गीतासे करना उत्तम है लेकिन इतनी सी बात समझनी भी जरुरी है , ध्यानका अंत ही अनंत है । ** पतंजलि योगसूत्र कहते हैं :--- "चित्त बृत्ति निरोधः सः योगः " और कृष्ण कह रहे हैं :--- " दुःख संयोग वियोगः सः योगः " ऐसी ग्रंथियोंको धीरे - धीरे खोलना जो दुःख ऊर्जाका श्राव करती रहती हैं , योग कहलाता है । चित्तकी बृत्तियाँ क्या हैं ? इस बातको आगे देखेंगे । ~~~ॐ ~~