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तंत्र और योग ---7

कुण्डलिनी और मूलाधार चक्र तन-मन से जो निर्विकार करे वह योग है और ----- कुण्डलिनी से चेतना और चेतना से ब्रह्म की अनुभूति तंत्र से मिलती है । तंत्र कहता है ----- सूक्ष्म शरीर [ आत्मा] स्थूल देह से चक्रों के माध्यम से जुड़ा होता है और योग कहता है [गीता-14.5 ] ----- आत्मा को देह में तीन गुण रोक कर रखते हैं । तंत्र में सात चक्रो की साधना करनी होती है और योग में काम,कामना, क्रोध, लोभ, मोह,भय,अहंकार - सात गुण-तत्वों की साधना होती है , तंत्र और योग में क्या मौलिक अंतर है ?...आप सोचना । मूलतः मूलाधार का सक्रीय होना , कुण्डलिनी जागरण है जिसके फल स्वरुप गुण तत्वों की पकड़ कमजोर पड़ती है और चेतना का फैलाव होता है । यह स्थिति वह है जब परम प्यार की लहर फैलनें लगती है । कुण्डलिनी के नाम पर आज अनेक मार्ग हैं जो कुण्डलिनी जागृत करानें की कोशीश कर रहें है लेकीन यहाँ आप एक बात को अच्छी तरह से समझलें ----- जो कुण्डलिनी की गणित में उलझता है वह कुछ नहीं प्राप्त करता और जो गंगा-धारा की तरह योग में बह रहा है उसे सब कुछ बिना खोजे मिल जाता है । योग या तंत्र में , फल की कामना एक अवरोध है । ====ॐ====