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सत्य की खोज

सत्य की खोज  “जिसने मन को जीत लिया है, उसके लिए मन सबसे अच्छा मित्र है ; लेकिन  जो ऐसा करने में विफल रहा है, उसके लिए उसका मन सबसे बड़ा दुश्मन बना रहता है " निम्न लिखित चार विशेषताओं के कारण अनियंत्रित मन व्यक्ति के जीवन को अस्त-व्यस्त करने की क्षमता रखता है 1. यह पसंद और नापसंद से भरा है 2. इसमें अतीत या भविष्य में फिसलने की प्रवृत्ति है 3. यह अंतहीन इच्छाएं उत्पन्न करता है 4. यह वस्तुओं और प्राणियों के प्रति लगाव विकसित करता है। ज्यादातर लोग मन के कारण या तो अपने भूत काल से जुड़े रहते हैं या भविष्य की कल्पनाओं में डूबे रहते हैं , फलस्वरूप उनका आज उनके जीवन का अंग नही बन पाता और वर्तमान के आनंद से वंचित रह जाते हैं ।  हमारी पूरी जीवन शैली एक धोखा है, जो हमें किसी चीज के लिए तैयार करने के लिए बनाई गई है लेकिन वह चीज कभी आती नहीं है। हम अपना जीवन किसी चीज़ के पीछे भागते हुए बिताते हैं लेकिन हम नहीं जानते कि वह चीज़ क्या है?  गोदी के अपनें बच्चे के मनोविज्ञान को ध्यान से समझना ; खिलौने की दुकान पर वह एक के बाद एक सभीं खिलौनों को देखना और छूना चाहता है लेकिन पल भर के लिए फिर उन सबकी

सत् मार्ग

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एक भक्त के दिल की धड़कनें कहती हैं ⏬ # एक परा भक्त के कुछ मूल मंत्रों को ऊपर दिया गया है , आप इन 05 मंत्रों पर गंभीरता से मनन करें # प्रभु से एकत्व स्थापित करने के कुछ सूत्र यहां दिए जा रहे हैं , आप इनमें से किसी एक को पकड़ कर वैराग्य में छलांग लगा सकते हैं । वैराग्य ही भक्ति का फल है। # जैसे नदी में थोड़ी खुदाई से शीघ्र जल मिल जाता है वैसे तीर्थ में थोड़े प्रयत्न से प्रभु की खुशबू मिलने लगती है । # देवदर्शन , तीर्थ भ्रमण , सत्संग आदि से उठ रहे सत भावों में से किसी एक के साथ चित्त को बाध देना , धारणा है । धारणा की सिद्धि पर ध्यान में प्रवेश मिलता है । ध्यान की सिद्धि से संप्रज्ञात समाधि मिलती है और इसके बाद क्रमशः असंप्रज्ञात समाधि , धर्ममेध समाधि और कैवल्य मिलते हैं । # जबतक ईश्वर भाव जागृत नहीं होता , तीर्थ यात्रा मात्र मनोरंजन होता है । जब तीर्थ बुलाते हैं तब वह तीर्थ यात्री वहां से लौटता नहीं । # मन की शुद्धता ध्यान है । # गुणों से सम्मोहित चित्त की दौड़ गुदा , लिंग और नाभि के मध्य सीमित रहती है और निर्गुण चित्त प्रभु का आइना बन जाता है । # प्रभु केंद्रित साधक के लिए कोई अनित्य नह