क्या है सच ?
[क]....तन्हाई में डूबा , माथे से टपकते पसीनें को पोछ-पोछ कर जीनें वाला जो कुछ भी करता है , उस से उसे जो कुछ भी मिलता है ,वह उसे पुरी तरह से तृप्त नहीं कर पाता---क्यों ? [ख]....थोड़ा सा श्रम , थोड़ी सी समझ एवं मुस्कुराते भाव में डूबा अपने कर्म से जो कुछ भी पाता है , वह उसे तृप्त कर देता है ---क्यों? ऊपर दो बातें आप के सामनें रखी गयी हैं जिनका अपना - अपना आयाम है । पहली बात धन होगा , दौलत होगी , महल होगा ,नौकर -चाकर होंगे और मान -सम्मान होगा लेकिन मुस्कुराता चेहरा और चैन न होंगे ....क्यों? दूसरी बात न धन होगा , न अच्छा घर होगा , न नौकर- चाकर होंगे और समाज में न मान -सम्मान होगा लेकिन वह ब्यक्ति खुश होगा और तृप्त होगा ....क्यों ? ऐसा ब्यक्ति गुनगुनाता रहता है ----- हे प्रभु! मैं तो ऐसा कुछ किया भी न था और तूनें यह सब बिन मांगे दे दिया , मैं कैसे तेरे को धन्यबाद दूँ ? अब देखिये एक सत्य कथा एक आदमी - बिचारा बारह बर्षों तक एक कोयले के टूकडे को अपनें सीनें पर लटकाए रहा , वह समझता था की यह हीरा है । एक दिन उसका एक परम मित्र उसके पास आया , कुछ दिन उसके साथ था , एक दिन वह मित्र पूछ बैठा -------...