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Showing posts from August, 2013

●●तत्त्व ज्ञान ●●

●● तत्त्व ज्ञान ●● °1- लिंग शरीर क्या है ? स्थूल देह का पिंड , 05 कर्म इन्द्रियाँ और मन का योग , लिंग शरीर कहलाता है : भागवत - 11.22 °2- महत्तत्त्व क्या है ? 2.1> तीन गुणोंमें ( मायामें ) कालका प्रभाव महत्तत्त्वका निर्माण करता है । भागवत : 3.26 2.2 > महत्तत्त्व और कालसे तीन अहंकार निर्मित होते हैं जिनसे एक जीवके सभीं तत्त्व बनते हैं । भागवत : 2.5 °3- मन का निर्माण कैसे हुआ ? 3.1> सात्त्विक अहंकार और कालसे मन की उत्पत्ति है ।भागवत : 2.5+3.5+3.6+3.25+3.26+3.27 3.2> राजस अहंकार और काल से 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण की उत्पत्ति हुयी 3.3> ताम अहंकार और कालसे 05 तन्मात्र और 05 महाभूतोंकी उत्पत्ति हुयी 3.4 > 05 महाभूत + 05 तन्मात्र + 11 इन्द्रियाँ + बुद्धि + अहंकार + 03 गुणों से ब्रह्माण्ड और देहके पिंडका निर्माण हुआ 3.5 > ब्रह्माण्ड और जीव विज्ञानमें वायु और आकाश का योगदान महत्वपूर्ण है । प्राकृतिक प्रलयमें वायु पृथ्वीसे गंध लेकर उसे जलमें बदलती है । वायु जलसे उसका गुण रस लेकर अग्नि ( तेज ) में बदलती है । अन्धकार अग्नि से उसका रूप लेकर उसे आकाश में बदल देता

दुःख संयोग वियोगः योगः

●●दुःख संयोग वियोगः योगः●● गीतामें प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं --- " दुःख सयोग वियोगः इति योगः " ये श्री कृष्ण वही हैं जो 11 सालकी उम्र तक मथुरासे नन्द गाँव ,नन्द गाँवसे वृन्दावन और नन्द गाँव से बरसाना तक बासुरिकी धुन और रासको योग का माध्यम बनाया था और महाभारतके समय जब उनकी उम्र 80 साल से ऊपर की रही होगी तब कहते हैं ----- " सिद्धानां कपिलः मुनिः अहम् अस्मि " गीता 10.26 कपिल मुनि सत युगके प्रारंभमें स्वयाम्भुव मनुकी पुत्री देवहूति और कर्मद ऋषिके पुत्र रूप में श्री विष्णु भगवानके पांचवें अवतार के रूप में जन्म लिया था । कर्मद ऋषि विन्दुसरमें 10,000 साल की तपस्या किया था । विन्दुसर अहमदाबाद -उदयपुर मार्ग पर अहमदाबादसे 130 किलो मीटर दूर है जो कभीं तीन तरफसे सरस्वती नदीसे घिरा हुआ क्षेत्र होता था और जिसे सरस्वती जल देती थी ।प्रभु श्री कृष्ण 125 वर्ष की उम्र में यदु कुल का अंत करके अपनें परम धाम की यात्रा की थी । कपिल मुनि अपनी माँ की कैवल्य प्राप्ति की इच्छाको पूरा करनें हेतु उनको सांख्य योगका ज्ञान दिया था । यह योग सत युगके प्रारम्भ में पैदा हुआ और द्वापर के अंत

भागवतकी सृष्टि - प्रलय गणित

●● सृष्टि - प्रलय - सृष्टि ●● °° सन्दर्भ - भागवत :---- 2.5+3.5+3.6+3.25-3.27+11.24+11.25 * ब्रह्मा , मैत्रेय , कपिल और कृष्णके सांख्य तत्त्व ज्ञानका सार :---- ^ माया पर कालका प्रभाव हुआ फलस्वरुप ^ 03 अहंकार उपजे > सात्त्विक अहंकारसे कालके प्रभावसे --- मन + 10 इन्द्रियोंके अधिष्ठाता 10 देवता उपजे   > राजस अहँकारसे कालके प्रभावसे ----- 10 इन्द्रियाँ + बुद्धि + प्राण उपजे > तामस अहंकारसे कालके प्रभावसे ---- ° शब्द उपजा ° शब्दसे आकाश उपजा ° आकाशसे स्पर्श ° स्पर्शसे वायु ° वायुसे रूप ° रूपसे तेज ° तेजसे रस ° रससे जल ° जल से गंध ° गंधसे जल उपजा अर्थात 05 तन्मात्र और 05 बिषय उपजे और जब तत्त्व प्रलय होती है तब ----- * वायु पृथ्वीसे गंध छीन लेती है * पृथ्वी जलमें बदल जाती है # जलका रस वायु ले लेती है # जल अग्निमें बदल जाता है ¢ अँधकार अग्निसे रूप ले लेता है ¢ अग्नि वायुमें वदल जाती है ^ आकाश वायुसे स्पर्श छीनता है ^ वातु आकाशमें विलीन हो जाती है > काल आकाशसे शब्द ले लेता है > आकाश तामस अहंकारमें बदल जाता है * राजस अहंकारमें 10 इन्द्रियाँ , बुद्धि , प्राण विलीन

ध्यान और हम

इंद्रियों का स्वभाव है बिषयों में रमण करना  मन का स्वभाव है इंद्रियों पर भरोषा रखना  बुद्धि मन की भाषा को समझती है  और .. . इन सबको जो उर्जा चलाती है वह है तीन  गुणों की उर्जा  सात्विक , राजस और तामस तीन गुणों का माध्यम का नाम है माया  माया  से माया में यह संसार है  यह संसार मन का विलास है  और  इसके परे का आयाक ब्रह्म का आयाम है जहाँ मनुष्य संसार को ब्रह्म की छाया रूप में देखता है / मन - बुद्धि तंत्र की बृत्तयाँ हैं - जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति  जाग्रत स्थिति में इन्द्रियाँ अपनें - अपनें बिषयों की तलाश में होती हैं  और   इद्रिय - बिषय संयोग भोग है / स्वप्न में ह्रदय जाग्रत अवस्था के अनुभव को प्राप्त करता है और  सुषुप्ति में इन दोनों के अनुभव की लहरें दिखती हैं  जाग्रत , स्वप्न और सुषुप्ति , इनमें गुण कर्ता होते हैं  और  प्रभु की अनुभूति गुणातीत की स्थिति में ही संभव है   फिर क्या करें ? ध्यानका अभ्यास जब गहरा हो जाता है तब इन तीन आयामों से अलग एक और आयाम उठता  है जिसे कहते हैं तुरीय जहाँ गुणों की छाया भी  नही पड़ती  और  वहाँ  जो होता है वह निर्गुण होता है