Posts

Showing posts with the label सिद्ध - योगी

सिद्ध योगी कोई दूर नहीं

गीता श्लोक 13.15 परमात्मा की परिभाषा कुछ इस प्रकार से देता है ------- अति सूक्ष्म , अविज्ञेय परमात्मा सभी चर-अचर के अन्दर, बाहर, दूर, समीप में है और चर- अचर भी वही है । आप अपना कुछ वक्त इस परिभाषा को समझनें में लगाएं , आप को आनंद मिलेगा । अर्जुन श्री कृष्ण के मित्र हैं, उनको बचपन से जानते हैं और परम कुरुक्षेत्र में अर्जुन के सारथी हैं लेकिन--- अर्जुन को साकार श्री कृष्ण में निराकार कृष्ण नहीं दिखता पर संजय जो धृत राष्ट्र के साथ कहीं दूर हैं , उनको साकार श्री कृष्ण में निराकार परम श्री कृष्ण दिख रहे हैं .....ऐसा क्यों ?---यह बात भी सोचनें लायक है । अब जरा हमें स्वयं को भी देखना चाहिए ------- हम तीर्थों में पहुंचते हैं , मन्दिर जाते हैं , प्रतिमाओं को पूजते हैं , गंगा स्नान भी करते हैं , आखित हम किस अतृप्ति को तृप्त करना चाहते हैं ? ------सोचिये और खूब सोचिये क्यों की यह स्वयं से सम्बन्धित है । हम प्रभु के प्रसाद रूप में ऐसा अवसर प्राप्त करते हैं की सिद्ध - योगी से जुडनें का मौका मिल जाता है , हम अपना घर - परिवार छोड़ कर वहाँ पहुंचते हैं , हममें पुरी श्रद्धा भरी होती है जिसको उस समय