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गीता सन्देश - 10

हमारा भोग में पहला कदम ज्ञानेन्द्रियों , अपनें - अपनें बिषयों में, जब रूचि लेनें लगती हैं, तब वह ........ हमारा भोग का पहला कदम होता है ॥ गीता कहता है : इन्द्रिय बिषय के मिलन से , मन- इन्द्रिय योग से जो ऊर्जा बिषय को प्राप्त करनें के लिए उठती है , उसे आसक्ति कहते हैं ॥ आसक्ति स्तरपर जो होश बना लिया , वह योग मार्ग पर पहला कदम रख लिया - कुछ ऐसा समझो ॥ गीता एक दर्शन नहीं है , गीता एक ऎसी किताब नहीं है जिसको बसते से न निकाल कर , उसकी बाहर - बाहर से पूजा करके उसका प्रसाद प्राप्त करनें की कामना में बैठे रहना , गीता जीवन जीनें की नियमावली है ॥ गीता जीवन के एक - एक कदम को बताता है की भोग संसार में कैसे रखना है । गीता मनुष्य के साथ हर वक़्त है लेकीन ...... मनुष्य गीता को अपनानें में कंजूशी करता है ॥ जिसनें गीता को अपनाया , वह जीवन जीया , और ..... जो गीता से दूरी बना कर जीना चाहा , वह ...... सिकुड़ा - सिकुड़ा जीवन को अपनें पीठ पर ले कर चलता है और ..... रास्ते में कहीं दम तोड़ देता है , तन्हाई में ॥ आगे देखेगे - आसक्ति के सम्बन्ध में गीता के कुछ श्लोकों को ॥ ==== ॐ =====