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गीता अमृत - 85

कहीं और चलें ----- [क] हर पल बदलते रहनें का नाम है - प्रकृति ........ [ख] मनुष्य समस्याओं से हर पल घिरा हुआ है , अहंकार का परिणाम है , समस्याएं ....... [ग] मनुष्य समस्यायों से भागता है लेकीन भाग कर जाएगा भी कहाँ ....... [घ] मनुष्य स्वयं को नहीं , बासनाओं के बिषयों को बदलता रहता है जो स्वयं को धोखा देना जैसा है ...... [च] गुणों का सम्मोहन ही बासना है ......... [छ] बासना दुस्पुर है ..... [ज] भोगी का परमात्मा देता है और योगी का परमात्मा द्रष्टा है ....... [झ] परम प्रीति में डूबा बिना बोले लोगों को आकर्षित करता है ...... ===== ॐ =====