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Showing posts from March, 2021

समाधि क्या है भाग - 1

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  महर्षि पतंजलि अष्टांगयोग का आठवें अंग के रूप में समाधि की कुछ निम्न प्रकार से व्यक्त करते हैं । यह सम्प्रज्ञात समाधि है जिसकी सिद्धि असंप्रज्ञात समाधि में पहुँचाती है 👇

ध्यान (Meditation ) क्या है ?

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  महर्षि पतंजलि योग के सातवें चरण - ध्यान ( meditation ) को परिभाषित कर रहे हैं , यहाँ , देखिये निम्न स्लाइड में 👇

धारणा क्या है ?

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  महर्षि पतंजलि के विभूति पाद के सूत्र - 1 में धारण की परिभाषा मिलती है । पतंजलि के अष्टांगयोग की 08 भूमियों मरण से धारणा 06 वी भूमि है । 08 भूमियों में पहली 05 , बाह्य भूमियाँ हैं और आखिरी 03 ( धारणा , ध्यान , समाधि ) आतंरिक भूमियाँ हैं । महर्षि के शब्द जीवंत शब्द हैं , मुर्दे शब्द नहीं हैं । योग साधक की आत्मा जब महर्षि के शब्दों को छूती है तब स्थूल शरीर में हल्का सा कंपन पैदा होता है लेकिन यह क्षणिक होता है । योग साधक के लिए पतंजलि के शब्द पारिजात मणि जैसे पारदर्शी होते हैं जिसमें साधक स्वयं के रूप को देखता है ।  आइये , सब चलते हैं विभूति पाद सूत्र - 1 में 👇 

प्रत्याहार पतंजलि के शब्दों में

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  पतंजलि योग की यात्रा में हम चार पड़ावों को पार कर चुके हैं और आज  पांचवें पड़ाव पर आ पहुंचे हैं जहाँ से  समाधि तीसरा पड़ाव है । इन्द्रिय नियोजन , इंद्रजीत होना , कैवल्य की यात्रा को अति सुगम बना देता है  और प्रत्याहार पूर्ण इन्द्रिय नियोजन अवस्था का नाम है।  आइये ! देखते हैं पतंजलि के शब्दों में प्रत्याहार को 👇

हठ योग प्रदीपिका और प्राणायाम

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  पतंजलि के अष्टांगयोग के चौथे अंग प्राणायाम से सम्बंधित यह 10 वां अंक है । आज हम हठ योग प्रदीपिका के प्राणायाम सम्बंधित कुछ सूत्रों को देखने जा रहे हैं । जो श्वास हम ले रहे हैं , जो श्वास हम बाहर निकाल रहे हैं , मन की गति और हृदय की गति में सीधा समानुपात है । आइये ! देखते हैं निम्न स्लाइड को 👇

प्राणायाम के सम्बन्ध में प्रभु श्री कृष्ण की कुछ और बातें

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  प्राणायाम के सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत पुराण स्कन्ध - 11 में प्रभु श्री कृष्ण उद्धव जी को निम्न बातें बता रहे हैं। ज्ञानयोगी उद्धव जी देखने में कृष्ण जैसे ही दिखते हैं और मथुरा में प्रभु के सलाहकार हैं । देवताओं के पुरोहित श्री बृहस्पति जी के शिष्य उद्धव जी निराकार ब्रह्म के उपासक हैं और कृष्ण की छाया जैसे कृष्ण के साथ रहते हैं । कृष्ण - उद्धव वार्ता भागवत : 11.7 - 11.29 के मध्य 1030 श्लोकों में है । साकार प्रभु का निराकार उपासक की तत्त्व ज्ञान सम्बंधित यह वार्ता उपासना का श्रोत है।

श्रीमद्भागवत पुराण में प्राणायाम

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  श्रीमद्भागवत पुराण में   ब्रह्म ऋषि नारद 5 वर्षीय बालक ध्रुव को प्राणायाम के माध्यम से श्री हरि के दर्शन प्राप्ति का उपाय बता रहे हैं । आप भी देखिये⬇️

10 प्राण कौन से हैं ?

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  प्राणायामका  यह सातवाँ अंक 10 प्राणों से सम्बंधित है। आइये ! चलते हैं , प्राणायाम के इस अंक की ओर 👇

प्राणायाम में प्राण क्या है ?

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  प्राणायाम अर्थात  प्राण + आयाम । यहाँ प्राण क्या है ?  इस संबंध में श्रीमद्भागवत पुराण में झांकते हैं । देह में 10 वायु हैं । कुछ लोग इन वायुओं को प्राण कहते हैं और  कुछ लोग प्रारंभिक 05 वायुओंको प्राण कहते हैं । वायुओं के सम्बन्ध मरण पिछले अंको में बताया जा चुका है।

प्राणायाम सम्बंधित भागवत के 06 सूत्र

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महर्षि पतंजलि के अष्टांगयोग के चौथे अंग प्राणायाम के सम्बन्ध में पतंजलि योग सूत्र के आधार पर कुछ ज्ञान प्राप्त किया गया अब श्रीमद्भागवत पुराण के 06 सूत्रों के सार को देखते हैं , यहाँ 👇  

अष्टांगयोग सिद्धि से क्या मिलता है ?

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  पतंजलि योग सूत्र साधन पाद के दो सूत्र बता रहे हैं कि अष्टांग योग सिद्धि से अंतःकरण प्रकाशित हो उठता हाउ और वह योगी ज्ञान की उच्चतम शिखर पर पूर्ण शांत चित्त वाला परम से परम में तीन गुणों की साम्यावस्था में होता है 👇

पतंजलि का चौथे प्रकार का प्राणायाम

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प्राणायाम की विधियाँ

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  महर्षि पतंजलि के शब्दों में प्राणायाम का अगला चरण प्रस्तुत है ।  रेचक , पूरक और कुम्भक के सम्बन्ध में पतंजलि के दो सूत्रों के माध्यम से आप देख सकते हैं कि प्राणायाम में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए 👇

पतंजलि योग में प्राणायाम क्या है - 1

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  पतंजलि अपने योग सूत्र में अष्टांगयोग के चौथे अंग के रूप में प्राणायाम को स्थान देते हैं । प्राणायाम -परिचय के सम्बन्ध में निम्न स्लाइड को आप देख सकते हैं 👇

योग में आसन क्या है ?

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महर्षि पतंजलि अपनें योग दर्शन में आसनको निम्न प्रकार से परिभाषित करते हैं । आसन अष्टांयोग का तीसरा अंग है । 

पतंजलि योगसूत्र और ईश्वर

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  पतंजलियोगसूत्र में अष्टांगयोग के दुसर्व अन्ह नियम का आखिरी अंग है ईश्वर प्रणिधान । आइये ! देखते हैं इस तत्त्व के संबंश में कुसह और बातों को , निम्न स्लाइड के माध्यम से 👇

प्रणव (ॐ ) क्या है ?

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  पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 27 में बताया गया कि .... प्रणव ( ॐ ) या एक ओंकार प्रभु का संबोधन है और इसका अर्थ समझते हुए जप करने से योग की उच्च भूमि मिलती है । पतंजलि नियम के आखिरी अंग ईश्वर प्रणिधानि के संदर्भ में यह बात कहते हैं । अब देखते हैं , प्रणव के सम्बन्ध में कुछ बातें ⬇️

प्रभु का संबोधन ॐ है ~पतंजलि

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  पतंजलि अपनें समाधि पाद सूत्र : 27 , 28 और 29 में बता रहे हैं कि प्रणव ( ॐ ) प्रभु का संबोधन है । ॐ जाप करते रहने से निर्गुण , निराकार , सर्वत्र व्याप्त ईश्वर की अनुभूति हृदय में होने लगती है । प्रभु जो मन - बुद्धि - अहँकार की पकड़ की सीमा से परे है , उसकी आहट ॐ जाप से हृदय में मिलने लगती है। देखिये यहाँ , महर्षि पतंजलि के सुत्रों को ⬇️

पतंजलि के शब्दों में ईश्वर कौन है ? क्रमशः

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  पतंजलि योग दर्शन में चित्त वृत्तियों को शांत करानें हेतु मूल रूप से 08 मार्ग बताये गए हैं जिनमे से अष्टांगयोग प्रमुख है । अष्टांयोग के 08 अंगों में नियम दूसरा अंग है । नियम का पाँचवां अंग ईश्वर प्रणिधानि है । ईश्वर प्रणिधानि के अंतर्गत ईश्वर को महर्षि पतंजलि परिभाषित करना चाह रहे हैं । इस प्रसंग में  आज आप कुछ और जान सकते हैं । देखिये , पढ़िए और मनन कीजिए निम्न स्लाइड में दी जा रही पतंजलि की सूचनाओं पर ⬇️

ईश्वर कौन है ? पतंजलि के शब्दों में

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  पतंजलि ईश्वर को परिभाषित कर रहे हैं , देखिये इस दी गयी स्लाइड में । पतंजलि योग सूत्र पूर्ण रूप से सांख्य आधारित हैं लेकिन 25 वें तत्त्व पुरुष के अंतर्गत पुरुष विशेष के रूप में ईश्वर तत्त्व को जोड़ने के कारण पतंजलि योगदर्शन आस्तिक दर्शन बन गया जबकि सांख्य को नास्तिक -  अनैश्वर दर्शन के रूप में देखा गया ।

पतंजलि योग में ईश्वर प्रणिधान क्या है ?

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  पतंजलि योग सूत्र में अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम पाँचवां अंग ईश्वर प्रणिधानि क्या है ?

योगमें स्वाध्याय का क्या अर्थ है ? भाग - 2

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  पतंजलि योग दर्शन में अष्टांगयोग का दूसरा अंग है नियम । नियम का चौथा अंग है , स्वाध्याय । स्वाध्याय के सम्बन्ध में कुछ बातों को पिछले अंक में देखा गया और अब कुछ और बातों को इस अंक दो में देखते हैं 👇

पतंजलि के शब्दों में स्वाध्याय क्या है ?

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  पतंजलि अष्टांगयोग में यम के 05 अंगों के अभ्यास -सिद्धि के बाद नियम के 05 अंगों का जीवन भर अभ्यास करना होता है । नियम के 05 अंगों में स्वाध्याय चौथे स्थान पर है ।  इस प्रकार अष्टांगयोग साधना के अंतर्गत 05 यम और 03 नियम के अंगों की सिद्धि  स्वाध्याय में पहुँचाती है । संसार अनुभव के आधार पर और यम - नियम के अंगों की साधना की सिद्धि पर  साधक की दृष्टि संसार की ओर से वापिस लौटती है , स्व पर । मैं कौन हूँ ? के प्रश्न का उत्तर जब संसार में नहीं मिलता तब संसार के अनुभव के आधार पर साधक अपनें सुसुप्त विवेक को जगाता है जिसे स्वाध्याय कहते हैं ।  अब देखते हैं , स्वाध्याय के सम्बन्ध में पतंजलि के सूत्र को 👇

संतोष और तप क्या हैं ?

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पतंजलि के शब्दों में अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम के दूसरे और तीसरे अंगों (संतोष और तप ) के सम्बन्ध में महर्षि पतंजलि कह रहे हैं 👇

महर्षि पतंजलि के शब्दों में आतंरिक शौंच क्या है ?

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  पिछले अंक में बाह्य शौंच के संबंध में महर्षि पतंजलि को देखा गया और अब देखते हैं , आतंरिक शौंच को। योग में ऊर्जा बाहर से अंदर की ओर प्रवाहित होती रहती है अर्थात  अंतर्मुखी की प्रक्रिया प्रारंभ होती है , यह बात ध्यान में होती चाहिए कि ध्यान एक ऐसा मार्ग है जिसमें पुरुष प्रकृति के बंधनों 【 महाभूत , तन्मात्र , 11 इंद्रियों , अहँकार और महत् ( बुद्धि ) 】से मुक्त होता चला जाताहै । और अंततः अपनें मूल स्वरूप को प्राप्त करके कैवल्य को प्राप्त होता है । अर्थात वेदांत

महर्षि पतंजलि के शब्दों में शौच क्या है ?

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  पतंजलि योग दर्शन में शौच अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम जा पहला अंग हैं । यम की तरह नियम के भी 05 अंग हैं । यम के 05 अंगों जा अभ्यास करना होता है और नियम के 05 अंगों का जीवन भर पालन करना चाहिए । 👉 अब आगे 👇

अष्टांगयोग के दूसरे अंग नियम को समझते हैं

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पतंजलि अष्टांगयोग में अपरिग्रह क्या है ?

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  अष्टांगयोग में अपरिग्रह क्या है ? पतंजलि अष्टांगयोग के पहले अंग यम के अंतिम तत्त्व अस्तेय को हम यहाँ बुद्धि स्तर पर समझ रहे हैं । यहाँ 03 स्लाइड्स दी जा रही है ; पहली अष्टांगयोग के 08 अंगों को दिखा रही है , दूसरी यम के 05 तत्त्वों को दिखा रही है और तीसरी स्लाइड में अपरिग्रह के सम्बन्ध में कुछ बातें बतायी जा रही हैं । यम साधना यहाँ पूर्ण होती है और अगले अंकों में हम नियम के 05 तत्त्वों के सम्बन्ध में देखेंगे।