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गीता अमृत - 66

ब्रह्म और ब्राह्मण यहाँ गीता के निम्न श्लोकों को लिया जा रहा है ....... 2.11, 2.42, 2.62 - 2.63, 3.37, 4.19, 18.31 - 18.35, 18.42 और मनुश्मृति - 6.92 गीता कहता है [ गीता - 2.46 ] --- जो ब्रह्म में बसेरा करता हो , वह है - ब्राह्मण और ब्रह्म के सम्बन्ध में [ गीता - 8.3 ] कहता है - अक्षरं ब्रह्म परमं । मनुस्मृति - 6.92 में धर्म के दस लक्षण बताये गए हैं - ध्रितिका , क्षमा , दम , अस्तेय , शौच , इन्द्रिय निग्रह , धी, विद्या , सत्य , अक्रोध और गीता में [ गीता श्लोक - 18.42 ] ब्राह्मण के लक्षणों के रूप में यही बातें बताई गयी हैं । ब्राह्मण वह है - जो ब्रह्म से परिपूर्ण हो और जिसका ..... Compassion like sun .... Generosity like river .... Hospitality like earth जैसे हों । ==== ॐ =======