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गीता मर्म - 33

इन्द्रियाँ , द्वार हैं ------ गीता श्लोक - 5.13 में प्रभु अर्जुन से कहते हैं ....... हे अर्जुन ! वह, जिसके मन में कर्म करनें का भाव नहीं उठता , वह अपनें नौ द्वारों वाले शरीर रुपी महल में चैन से रहता है । पहले नौ द्वारों को देखते हैं ........ 2[आँख , कान , नाक ] + एक मुंह + एक गुदा + एक जननेंद्रिय , इन नौ द्वारों को आप समझें , मैं आगे चलता हूँ । क्या कोई राजा ऐसे किले में रहता हो जिसमें नौ द्वार हों और आनंद से रहता हो , क्या यह संभव है ? क्या आप कोई ऐसा किला देखे हैं जिसमें नौ द्वार हों ? दौलताबाद से दिल्ली तक , द्वारका से गंगा सागर तक, आप जाएँ और उस किले को खोंजे जिसमें नौ द्वार हों और उसमें रहनें वाला राजा परम आनंद में अपना जीवन जीया हो - यह आप के शोध का बिषय बन सकता है , ज़रा सोचना एकांत में । इन्द्रियाँ हमारे देह के द्वार हैं , जिनके माध्यम से हम संसार में कुछ खोजते रहते हैं , जीवन इस खोज में सरकता चला जाता है और वह मिलता है लाखों में किसी एक को वह भी सदियों बाद । प्रभु मार्ग देते हैं , उनको खोजना और उन पर चलाना तो हमें ही है । इन्द्रियों के माध्यम से हमें संसार जो प्रभु का ही फ