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Showing posts from June, 2011
गीता के 116 सूत्र अगले कुछ सूत्र सूत्र – 6.10 वह जो एकांत बासी हो , जिसका मन – बुद्धि प्रभु में हों और कामना रहित हो , योगी होता है // सूत्र – 8.8 जिसके मन में ब्रह्म हों , वह ब्रह्ममय होता है // सूत्र – 6.4 कामना - संकल्प रहित कर्म करता हुआ संन्यासी योगारूढ़ स्थिति में होता है // सूत्र – 18.17 अहंकार रहित कर्म बंधन नहीं होते // सूत्र – 18.24 अहंकार की ऊर्जा जिस कर्म हो वह कर्म राजस कर्म होता है // गीता के पांच सूत्रों को आप अपनाइए और अपनें जीवन में प्रयोग कीजिए गीता मात्र पढ़ना उत्तम है लेकिन गीता की राह पर चलना प्रभु - पथ है // ==== ओम ======
गीता के 116 सूत्र इस श्रंखला के अंतर्गत कुछ और सूत्र … .... सूत्र 6.1 संन्यासी / योगी कर्म बंधनों से मुक्त रहता है // सूत्र 4 . 35 ज्ञानी मोहित नहीं होता सूत्र 4.37 // सूत्र 6 . 2 योगी एवं संन्यासी कोई अलग – अलग नहीं दोनों शब्द एक दूसरे के संबोधन हैं // ज्ञानी कर्म – फल के सम्बन्ध में नहीं सोचता // सूत्र 6 . 3 कर्म तो हर पल सब कर रहे हैं लेकिन उनमें कितनें अपनें कर्म को योग बना कर योगारूढ़ की स्थिति पाते हैं ? गीता के छोटे - छोटे सूत्र आप को दिए जा रहे हैं इस उम्मीद से कि … ....... आप अपनें दैनिक जीवन में इनका प्रयोग करें … .. आप इनके रस के स्वाद को समझे … .. आप इनको अपनाएं … ... और इनको जीवन की सीढ़ी बना कर परम धाम की यात्रा करें // जीवन में एक बात पर होश रखना ------ राह का पत्थर एक दिन … . सीढी बन कर आगे की यात्रा कराता है // अपनें कर्मों में सत्य को समझना ही … . कर्म – योग है // ===== ओम ======
गीता के 116 ध्यान – सूत्र इस श्रृंखला मे गीता के कुछ और श्लोक … ... . सूत्र – 2.55 कामना रहित ब्यक्ति स्थिर – प्रज्ञ कहलाता है // He who is without desires is said to be settled in hi s wisdom . सूत्र – 5.23 काम – क्रोध की समझ सुख की जननी है // Awareness of sexual desire and anger is the seed of happiness . सूत्र – 2.70 मन मे आ रही एवं जा रही कामनाएं जिसके मन को अस्थिर न बना सकती हों वह स्थिर – प्रज्ञ होता है // He who does not affected by the dwelling desires in the mind , is said to be settled in his wisdom . सूत्र – 4.41 कर्म – फल की सोच संदेह उत्पन्न करती है और बिना फल की कामना के किया गया कर्म बंधन नहीं बनता // action without the expectation of fruit is not a bondage , and expectation of fruit in the action generates delusion . सूत्र – 2.71 कामना , स्पृहा , ममता एवं अहंकार रहित स्थिर प्रज्ञ होता है // man settled in his wisdom does not affected by desire , attachment , mineness and ego . सूत्र – 4.34 तत्त्व दर्शी ज्ञानी होता है और ज्ञ
गीता के 116 परम सूत्र अगले कुछ सूत्र गीता - 18.2 कर्म – फल सोच रहित कर्म संन्यासी के होते हैं // action without result – expectations is the action of Yogins . गीता - 16.21 काम , क्रोध एवं लोभ नर्क के द्वार हैं // sexual desire , lust , anger and greed these are the doors of Hell . गीता - 18.54 कामना रहित एवं समभाव का आयाम परा भक्ति का आयाम है // the space which develops within the mind and intelligence net – work by doing work without attachment , desire and in evenness state is the space of unswerving devotion where Brahman does not remain a mystery . गीता - 18.55 परा भक्त मुझे तत्त्व से समझता है // Yogin fully merged into Me understands Me as I am . भोग – तत्त्वों का बोध उस आयाम मे पहुंचाता है … .. जहाँ सब कुछ परमात्मा से परमात्मा में दिखानें लगता है // जहाँ दो नहीं एक रहता है और वह … . परमात्मा होता है // जहाँ देखनें वाला और दिखनें वाला सब … . परमात्मा होते हैं // ===== ओम ======
गीता मूल मन्त्र जहाँ हो उसे समझो यह समझ है कर्म की जो हर पल हमसे जुड़ा हुआ है // गीता कहता है -------- कर्म मे उपजा होश कर्म – योग है कर्म योग का होश ज्ञान है ज्ञान वैराज्ञ का द्वार है वैराज्ञ में कर्म संन्यास घटित होता है कर्म संन्यास में … .. कर्म अकर्म की तरह एवं अकर्म कर्म की तरह दिखते हैं और यह स्थिति ----- निर्वाण मे पहुंचाती है // और आप क्या जानना चाहते हैं … . जानते तो सब कुछ हो और जो जानते हो उसे समझो // ==== ओम =====