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Showing posts from May, 2010

बुद्धि योग गीता भाग - 04

बुद्धि - योगी बुद्धि - योगी कौन है ? यदि आप ज़रा ध्यान से देखें तो विज्ञान बुद्धि - योग का एक प्रभावी माध्यम है और गणित भी बुद्धि - योग साधना का एक प्रभावी माध्यम बन सकता है । आज विज्ञान में यह बात चर्चा का बिषय है की आइन्स्टाइन एक योगी थे या वैज्ञानिक ? योगी और वैज्ञानिक में क्या फर्क है ? योगी अपनी अनुभूति को जब शब्दों में ब्यक्त करना चाहता है तब वह काफी कठिनाई का सामना करता है और पूर्ण रूप से ब्यक्त करनें में सफल भी नहीं होता । आइन्स्टाइन का सापेक्ष सिद्धांत का गणित लगभग दस साल बाद आंशिक रूप से तैयार हो पाया और पिछले सौ वर्षों से आइन्स्टाइन के द्वारा कही गयी बातों की गणित बनाई जा रही है । बुद्धि जब थक जाती है तब यह स्थिर हो जाती है लेकीन यह स्थिर पंन अल्प समय के लिए होता है । जब बुद्धि सोच के बिषय पर टिक जाती है तब उस बुद्धि में उस बिषय का सही रूप झलकता है । बुद्धि को थकाओ नहीं बुद्धि को भगाओ । आइन्स्टाइन कहते हैं -- मेरी बुद्धि आम आदमी की बुद्धि की ही तरह है , एक छोटा सा अंतर है - आम आदमी सोच से भागता है और मैं सोच में बसना चाहता हूँ । जो सोच में बस गया उसकी सोच सत को पकड़ ह

बुद्धि योग गीता - भाग - 03

गीता की ओर या गीता से दूर भारत में गीता और सांख्य - योग अति प्राचीन हैं लेकीन क्या कारण है की इनका लोगों पर प्रभाव न के बराबर है ? भारत परम श्री कृष्ण की ओर जाता तो दिखता नही न्यू यार्क की ओर जाता जरुर दिखता है । भारतीयों को अपनी चीजे कम और पराई चीजे अधिक प्रभावित करती हैं । भारत में हिन्दू परिवार का गीता एक सदस्य है लेकीन उसे वह प्यार न मिल सका जो मिलना था । लोग इसे कपडे में लपेट कर रखते हैं और खोलते तब हैं जब परिवार में कोई आखिरी श्वास भर रहा होता है । क्या कारण है की लोग इसको कपडे में लपेट कर रखते हैं ? और क्यों उसे सुनाते हैं जो जाने ही वाला है ? गीता से प्यार करनें वालों की संख्या न के बराबर है क्यों की गीता बैरागी बनाता है । गीता आखिरी श्वास भरते को इसलिए सुनाते हैं की शायद उसे स्वर्ग में जगह मिल जाए । ऐसा ब्यक्ति जो जीवन भर भोग को गले में लटकाए घूमता रहा उसे अंत समय में गीता सूना कर स्वर्ग का टिकट देनें की बात लोगों के अन्दर कैसे आई होगी ? इस पर सोचना चाहिए । गीता में प्रभु अर्जुन को युद्ध पूर्व बैरागी बना कर युद्ध कराना चाहते हैं या ऐसा चाहते हैं की अर्जुन इस युद्ध में बै

बुद्धि योग गीता भाग - 02

श्रीमद भगवद्गीता क्या है ? धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरव - पांडव की सेनाओं के मध्य प्रभु श्री कृष्ण एवं उनके मित्र अर्जुन के मध्य जो बांते हुयी हैं उनसे जो कर्म - योग एवं ज्ञान - योग की गणित तैयार होती है , उसका नाम है , श्रीमद भगवद्गीता । Prof. Einstein Says ----- When I read Bhagwadgita and reflect about how God created universe, everything else seems so superfluous . गीता में कुल चार पात्र हैं ; प्रभु कृष्ण , अर्जुन , धृतराष्ट्र एवं संजय । प्रभु एवं अर्जुन के मध्य जो बातें हो रही हैं उनको धृतराष्ट्र को सूना रहे हैं , संजय और संजय जो कहते हैं वह आज हम सब को गीता के रूप में उपलब्ध है । यहाँ गीता में दो सुननें वाले हैं और दो ही सुनानें वाले । अर्जुन प्रभु के संग हैं , प्रभु उनके रथ के सारथी हैं लेकीन श्री कृष्ण में ब्रह्म अर्जुन को नहीं दिख रहा पर संजय जो श्री कृष्ण से कुछ दूरी पर हैं उनको साकार श्री कृष्ण में निराकार कृष्ण स्पष्ट रूप से दिख रहे हैं । प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को युद्ध पूर्व मूह रहित करनें के लिए सांख्य - योग का जो उपदेश दिया उसे अर्जुन भ्रमित मन - बुद्धि से पकड़ने

बुद्धि - योग गीता भाग - 01

भूमिका बुद्धि योग गीता के नाम से गीता के अठ्ठारह अध्यायों की यात्रा प्रारम्भ की जा रही है , आप सादर आमंत्रित हैं । यहाँ गीता के प्रत्येक अध्याय से केवल उन श्लोकों को लिया जाएगा जो सीधे बुद्धि पर हथौड़ा मारते हैं । तर्क - वितर्क के केंद्र को बुद्धि कहते हैं और यहाँ आप को गीता के उन श्लोकों को पायेंगे जो आप की बुद्धि में एक नहीं अनेक तर्क - वितर्क पैदा करनें में समर्थ हैं । बुद्धि एक ऐसा तत्त्व है जो विकार से निर्विकार में पहुंचा सकती है और स्वयं स्थिर हो कर मन के ऊपर अंकुश लगा सकती है । प्रभु का मार्ग है आस्था से और विज्ञान का मार्ग है तर्क से । आस्था समर्पण से है और तर्क की जड़ संदेह से निकलती है , जितना गहरा संदेह होगा उठाना गहरा विज्ञान निकलनें की संभावना होती है लेकीन संदेह के साथ प्रभु से जुड़ना असंभव होता है । संदेह से नफरत न करो , संदेह को समझो और जब संदेह के प्रति होश बनेगा तब संदेह श्रद्धा में स्वयं ढल जाएगा । बीसवी सताब्दी के प्रारम्भ में आइन्स्टाइन के पास क्या था जिसके आधार पर वे अपनें थिअरी आफ रिलेटिविटी को सिद्ध करते ? लेकीन उनकी आस्था इतनी मजबूत थी कोई उनके सामनें रुक न पा

गीता अमृत - 100

गीता सत का बीज बाटता है वैयानिकों एवं इतिहास कारों की राय है की गीता का समय 5561 वर्ष इशापुर्व से 800 वर्ष इशापुर्व का रहा होगा । गीता के इतिहास में उलझनें से किसी सत की प्राप्ति करना संभव नहीं क्योंकि उलझन संदेह के कारन होती है । संदेह अज्ञान की छाया है और समर्पण में सत की छाया दिखती है । गीता हजारों सालों से सत का बीज बिखेर रहा है लेकीन लेनें वाले कुछ कंजूस दीखते हैं । गीता हर हिन्दू परिवार में मिलता है लेकीन लोग इसको तब पढ़ते हैं जब घर में कोई आखिरी श्वास भर रहा हो । लोगों का विचार है की गीता सुनते हुए मरनें वाले को स्वर्ग मिलता है । हिन्दू परिवार में शायद ही कोई ऐसा ब्यक्ति मरता हो जिसको गंगा जल न पिलाया जाता हो और गीता न सुनाया जाता हो । वह जो मौत के भय से कोमा में है , जो मौत से लड़ रहा है, जो मरना नहीं चाहता और मौत उसे छोड़ना नहीं चाहती , क्या गंगा - जल पी कर और गीता सुन कर स्वर्ग में जगह पा सकता है ? गीता सुननें वाला क्या स्वर्ग में जाएगा या क्या परम धाम पायेगा ? यह कहना कठिन है लेकीन गीता की राह पर जो जिया हो उसे परमं धाम मिलता है, यह ध्रुव सत्य जरुर है । परम श्री कृष्ण के

गीता अमृत - 99

अंधों की बस्ती में चिराग बेचनें वाले ----- जिस समय श्री राम - श्री कृष्ण रहे होंगे वे दिन कैसे थे ? इस का अंदाजा लगाना तो कुछ कठिन सा लगता है लेकीन आज का समय कैसा है क्या कभीं मन में इस बात की सोच भी उठती है ? आज आये दिन नए - नए योगी , साधू , बैरागी , संन्यासी , पंथ , दर्शन , शास्त्र , मंदीर और आश्रम देखनें को मिलते हैं , यदि कोई किसी और लोक से पृथ्वी पर आये और धर्म के फैलाव के साधनों को देखे तो उनके मन में कैसा भाव उठेगा ? एक महान ध्यान गुरु अपनें उपदेश में एक बार कहे हैं ------- महाबीर और बुद्ध बैलगाड़ी - युग के ध्यानी थे लेकीन हमारे ध्यानी सबसे महंगी गाड़ियों के मालिक हैं । बुद्ध और महाबीर दोनों सम्राट थे , दोनों को जब पराम प्रीति की लहर लगी तब दोनों महल छोड़ कर जंगल की शरण में सत की खोज के लिए गए और आज लोग पांच सितारे आश्रमों में जा रहे हैं जहां अति आधुनिक भोग साधन उपलब्ध हैं , वह भी किफायती दर पर । मैं एक दर्शन शास्त्री की किताब पढ़ रहा था , एक जगह उनका कहना था ------ मैं इस पुरानें तथ्य को गलत साबित कर दिया की निर्वाण प्राप्त योगी काम से दूर हो जाता है । आज लोग ऐसे सन्यासीयों को चाह

गीता अमृत - 98

भोग - ऊर्जा भोग - ऊर्जा क्या है ? वह ऊर्जा जिससे ....... काम , कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं आलस्य पैदा हो , भोग ऊर्जा है । भोग ऊर्जा को यदि ग्राफ पेपर पर उतारा जाए तो जो चित्र बनेगा वह साइन करब [ sign curve ] होगा । साइन करव में उतार - चढ़ाव बराबर - बराबर होते हैं और भोग - ऊर्जा में सुख - दुःख आवागमन भी कुछ साइन करव की तरह ही होता है । भोग ऊर्जा में तू और मैं का गहरा सम्बन्ध होता है , अहंकार का प्रभाव भी गहरा ही होता है । भोग ऊर्जा में खोनें की गुंजाइश जब नज़र आती है तब क्रोध आता है और कामना टूटनें के साथ भी क्रोध ही पैदा होता है । भोग ऊर्जा में समर्पण दिखावे का होता है जो मोह के कारण होता है। भोग ऊर्जा अपना रंग बदलती रहती है । भोग ऊर्जा कभी - कभी योग ऊर्जा की तरह अपना रूप - रंग दिखाती है और ऐसा लगनें लगता है अमुक ब्यक्ति स्वयं प्रभु का अवतार हो । आप सुनें होंगे - रावण सीता को हरने साधू के वेश में आया था । यह जानना की कौन सी ऊर्जा भोग ऊर्जा है और कौन सी ऊर्जा योग ऊर्जा है , अति कठिन काम है , यह बात केवल उसे पता होती है या पता चल सकती है जो इस से प्रभावित होता है । ===== एक प्

गीता अमृत - 97

मनुष्य क्या चाहता है ? मनुष्य को छोड़ कर अन्य जीवों की चाह सिमित है - भोजन और काम तक लेकीन मनुष्य इनके अलावा भी कुछ और चाहता है , वह और क्या है ? अन्य जीव भोजन में जोर - जबरदस्ती तो करते हैं लेकीन काम में ऐसा नहीं करते । कोई भी जीव मनुष्य को छोड़कर अपनें बिरोधी लिंग वाले जीव के साथ काम के लिए बल का प्रयोग नहीं करता लेकीन मनुष्य कुछ भी कर सकता है । कहते हैं - मनुष्य जीवों में सर्वोत्तम जीव है , उसके पास असीमित बुद्धि है और वह काम - राम दोनों में रूचि रखता है । मनुष्य अपनें लिए महल बनाता है और उस महल में प्रभु के लिए एक छोटा सा मंदिर भी बनाता है । प्रकृति में मनुष्य के अलावा और अन्य कोई ऐसा जीव खोजना संभव नहीं जो प्रभु के लिए भी बसेरा बनाता हो । मनुष्य एक मात्र ऐसा प्राणी ऐसा है जिसके जीवन पथ में दो केंद्र हैं - एक केंद्र है भोग और दूसरा केंद्र है , राम । वह जिसके दो केंद्र है उसे इलिप्स कहते हैं और मनुष्य का जीवन - पथ एक इलिप्स जैसा ही है । मनुष्य को छोड़ कर अन्य जीवों का जीवन - पथ एक केन्द्रवाला है और एक केंद्र वाला बृत कह लाता है । मनुष्य जब एक केंद्र की ओर चलता है तब उसे दूसरा केद्र

गीता अमृत - 96

भोग से भागो नहीं , जागो भोग से लोग भाग कर हिमालय पहुँचते है , सत्य की खोज के लिए , लेकिन उनके साथ क्या घटित होता है ? भागना , भय की छाया है और भय के साथ प्रभु से जुड़ना एक भ्रम होता है - गीता सूत्र - 2.52 कहता है - मोह के साथ बैराग्य संभव नहीं और बिना बैराग्य सत की खोज संभव नहीं । अब आप उनके चेहरों पर नजर डालें जो नित मंदिर में दिखते हैं । सभी ऐसे दिखाते हैं जैसे चोर कोतवाल के सामनें खडा हो , भयमें जो पूर्ण रूप से डूबे हैं , वे मंदिर में दिखते हैं । रामचरित मानस के रचनाकार श्री तुलसी दास जी कहते हैं ---- बिनु भय होई न प्रीति .... अर्थात प्रीति की लहर उठानें के लिए भय को अपनाना जरुरी है , सबकी अपनी - अपनी सोच है और अपनी - अपनी यात्रा भी करनी है । गीता तत्त्व विज्ञान में , भय - मोह तामस गुण के तत्त्व हैं और राजस - तामस गुण प्रभु मार्ग के मजबूत अवरोध हैं । गीता कहता है - यदि तुम भय में हो तो प्रभु से प्रीति क्या करोगे , क्या गाय कसाई से प्रीति करती है या कर सकती है ? प्रीति सत है और सत वह है जो बंधन मुक्त हो । भोग से भोग में हम सब हैं , संसार भोग से परिपूर्ण एक माध्यम है , संसार से

गीता अमृत - 95

कहते हैं -- श्रद्धा से परमात्मा मिला सकती है इस सम्बन्ध में हमें गीता के निम्न सूत्रों को देखना चाहिए ....... गीता अध्याय - 17 के 28 श्लोक , श्लोक - 18.19 - 18.39, 18.43 - 18.44 , 18.54 - 18.55 , 6.27, 2.52, 15.3, 6.42, 7.3, 7.19, 12.5, 14.20 आप जब धार्मिक साहित्य को पढते होंगे तो आप को जगह - जगह यह बात मिलती होगी - श्रद्धा में प्रभु बसता है लेकीन क्या आप कभी यह भी जाननें की कोशिश की है की श्रद्धा है क्या ? गीता श्लोक - 17.2 - 17.3 कहते हैं - गुणों के आधार पर श्रद्धा तीन प्रकार की होती है । गीता में जब आप ऊपर दिए गए सूत्रों को देखेंगे तो आप को मिलेगा ----- गुणों के आधार पर ...... [क] तीन प्रकार के लोग हैं [ख] सब के अपनें - अपनें कर्म हैं , अपनें -अपनें स्वभाव, त्याग , तप , ध्यान , साधना , यज्ञ , पूजा , प्रार्थना , ध्रितिका , बुद्धि , आस्था एवं श्रद्धा है । दो शब्द हैं - बिकल्प और निर्बिकल्प , साकार एवं निराकार , सकाम और निष्काम - आप इन शब्दों को समझिये और इनके आधार पर प्रभु के मार्ग को पहचाननें की कोशिश करिए । ऊपर के शब्दों का आधार है - कामना ; ऐसे भाव जिनके पीछे कामना होती है वे ज

गीता अमृत - 94

हमारी भूल आये दिन सुननें में आता है - अमुक ब्यक्ति करोणोंके आभूषण अमुक मंदिर में भेट के रूप में दिया । क्या मंदिर की मूर्ती जो किसी फकीर की हो सकती है , किसी देवता की हो सकती है , साकार रूपों में अवतरित हुए प्रभु की हो सकती है , वह आभूषणों को प्राप्त करके उस ब्यक्ति के द्वारा किये गए गुनाहों को माफ़ कर सकती है ? क्या पीर , फकीर , देवता एवं परमात्मा मनुष्य जैसे स्वभाव वाले होते हैं ? मनुष्य पल में अपना रंग बदलता है - अभी जो हमारा मित्र है वह अगले पल शत्रु बन जाता है और शत्रु मित्र बन जाता है - अर्थात हम अपनें मन के गुलाम है - मन की गति हमें मन के तत्वों के अनुकूल रूपांतरित करती रहती है । गीता में परम प्रभु श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं ---- हे अर्जुन प्रभु किसी के कर्म , कर्म - फल की रचना नहीं करता , यह सब उस ब्यक्ति के स्वभाव के अनुकूल होता है । जैसा कर्म होता है , वैसा फल मिलता है और फल यदि पूर्व चाह के अनुकूल न हुआ तो दुःख मिलता है और यदि चाह के मुताबिक़ हुआ तो हम सुख का अनुभव पाते हैं । भोगी ब्यक्ति जब तक भोग में है तब तक वह प्रभु ,पीर एवं फकीरों को नहीं समझ सकता । प्रभु भौतिक बस्त

गीता अमृत - 93

स्मृति और हम [क] शिव कहते हैं ---- स्मृति का गुलाम मैं नहीं हूँ , स्मृति मेरी गुलाम है । [ख] अहंकार रहित स्मृति का प्रयोग करता कभी दुखी नही हो सकता और स्मृति में उलझा कभी सुखी नही रहता । [ग] स्मृति को निर्मल बनाना , योग है और स्मृति को निर्मल समझना , भोग है । [घ] स्मृति का एक छोर नरक में और दूसरा छोर परमधाम में खुलता है । [च] स्मृति के आधार पर स्वयं को समझना , ध्यान है और स्मृति में ही बनें रहना , भोग है । [छ] स्मृति के अश्रु को पोछनें वाला , स्वयं को धोखा देता है और उसे देखनें वाला द्रष्टा बन जाता है । [ज] स्मृति के अँधेरे में रोशनी की किरण देखनें वाला , यथार्थ देखता है और उस अँधेरे में रहनें वाला भ्रमित होता है । [झ] भ्रम और संदेह , दोनों नरक के द्वार हैं । [प] संदेह इतना खतरनाक नहीं जितना भ्रम है , संदेह में बाहर जानें का मार्ग दिखता है लेकीन भ्रम में --- ? [फ] जिंदगी की लम्बाई मापनें वाला कभी सुखी नहीं रह सकता । जितनी गहरी कामना होगी , उतना गहरा दुःख होगा जब कामना टूटेगी । ==== ॐ =====

गीता अम्रित - 92

गीता में क्या है ? ## गीता में क्या है ? की सोच प्रभु से दूर ले जाती है और ....... ## गीता में स्वयं को खोजनें वाला एक दिन प्रभु से परिपूर्ण हो उठता है [क] सम्पूर्ण ब्रहांड का आदि , मध्य और अंत का रहस्य , गीता देता है [ख] सृष्टि का अदि , मध्य एवं अंत का राज , बताता है , गीता [ग] संसार क्या है , संसार के तत्त्व क्या हैं और मनुष्य - संसार का कैसा सम्बन्ध है , बताता है , गीता [घ] गुण क्या हैं , गुण - आत्मा का क्या सम्बन्ध है , मिलता है , गीता में [च] कर्म , कर्म संन्यास , त्याग एवं बैराग्य का राज बताता है , गीता [छ] भोग - योग के सम्बन्ध को ब्यक्त करता है , गीता [ज] काम क्या है , काम का पूरा ज्ञान देता है , गीता [झ] कामना , क्रोध , लोभ , भय , अहंकार एवं मोह का समीकरण मिलता है , गीता में [प] ध्यान , ज्ञान एवं आत्मा - परमात्मा के समीकरण को देता है , गीता [फ] भावातीत सत्य को कैसे समझें , बताता है , गीता काम से राम ---- राग से रहीम ---- भोग से बैराग्य ..... और अंततः ----- आत्मा के शरीर छोडनें का रहस्य , बताता है ..... गीता ===== ॐ =====

गीता अमृत - 91

कल आज और कल [क] कल आज से अच्छा था की सोच दुःख पहुंचाती है [ख] कल आज से अच्छा होगा की सोच वर्तमान में सुख देती है लेकीन कल दुःख भी दे सकती है [ग] कल आज से खराब होगा की सोच वर्तमान को दुःख से भर देती देती है [घ] कल आज जैसा होगा की सोच आलस्य पैदा करता है [च] कुछ लोग दूसरों के दुःख में अपना सुख देखते हैं [छ] कुछ लोग अपनें सुख में दूसरों के सुख को देखते हैं [ज] कुछ लोग अपनें को दुखी करके राहत की श्वास भरते हैं [झ] कुछ लोग दूसरों को दुखी करके खुश होते हैं [प] भोगी योग से योगानंद तक को अपनें भोग का माध्यम समझता है [फ] योगी स्वयं को सबका माध्यम समझता है दस छोटी - छोटी बातें आप के सामनें हैं , जिनको आप जानते भी हैं लेकीन इन बातों को आप अपनी बुद्धि में रखते हैं या नहीं , यह आप को मालूम होगा । जीवन को आनंदित करनें के लिए ----- महल नहीं चाहिए ----- धन नहीं चाहिए ------ स्त्री - पुत्र - पुत्री या परिवार नहीं चाहिए ----- जीवन को आनंद से भरनें के लिए चाहिए ---- ह्रदय में परम प्रीति की एक लहर -- प्रभु पर आस्था --- लोगों पर विश्वास --- सरल भोजन --- सरल जीवन --- सम्यक निद्रा --- कुछ कर्म ---- सब को अप

गीता अमृत - 90

समझिये ----- ## अपनी औलाद को उठाते - उठाते मनुष्य स्वयं झुक जाता है ## जिस बच्चे को उंगली पकड़ कर चलना सिखाया , उसकी उंगली पकड़ कर चल रहे हैं ## सभी अपनें बच्चे को अपने इशारे पर चलानें का प्रयाश करते हैं लेकीन अंत में उसके इशारे पर चलना पड़ता है $$ माँ का बंधन जब कुछ ढीला होनें लगता है , पत्नी की डोरे में उलझना होता है $$ जब अपनें बेगाना समझनें लगें तब प्रभु को पकड़ना चाहिए $$ जब सभी सहारे मिथ्या से दिखनें लगें , प्रभु को सहारा बनाना चाहिए ** जीवन को छोटी - छोटी बातों से प्रभावित न होनें दो ** जीवन प्रभु का प्रसाद है , इसे ब्यर्थ में न जानें दो ** आप जिसको चाहते हैं , वह आप को भी चाहे , यह जरुरी नहीं लेकीन चाह एक मजबूत बंधन है ++कौन है किसका की सोच आगे नहीं चलनें देती , और कौन है सब का - की सोच पीछे नही जानें देती ===== ॐ ======

गीता अमृत - 89

भ्रम का घर - मन [क] - जितनें लोग हैं , सब का अपना - अपना संसार है [ख] - संसार मन का फैलाव है [ग] - लोग अपनें - अपनें संसार में इतनें ब्यस्त हैं की प्रभु की स्मृति लोगों की बुद्धि में न के बराबर है [घ] - संसार को अपनें मन का प्रतिबिम्ब समझनें वाला ब्यक्ति , भोगी है [च] - संसार को प्रभु का प्रतिबिम्ब समझनें वाला , योगी है [छ] - शरीर त्याग्नें के पहले जिसको अपनें संसार में प्रभु दिखनें लगता है , वह परम गति में पहुंचता है [ज] - मन पर गुणों का सम्मोहन , मन को सत्य से दूर रहता है [झ] - मन पर जब गुणों का प्रभाव नहीं होता तब वह प्रभु को देखता है [**] - भोग -भगवान् - दोनों एक साथ एक बुद्धि में नहीं रहते [**] - ब्रह्म की अनुभूति मन - बुद्धि से परे की है गीता के दस सूत्र उस परम मार्ग की ओर इशारा करते हैं जो भोग संसार से चलकर संन्यास से होते हुए प्रभु के आयाम में पहुँचते हैं । कौन प्रभु को चाहता है ? जो प्रभु को चाहता है , वह क्यों चाहता है ? आप को यदि प्रभु को पानें की चाह हो तो सोचना उस चाह के कारण को ? और इतना समझना की ----- जब तक चाह है , प्रभु दूर है ..... जब चाह समाप्त हो जाती है तब प्रभ

गीता अमृत - 88

हम कितना जानते हैं ? [क] दूसरों को देखते - देखते हम स्वयं को धीरे - धीरे भूल रहे हैं ....... [ख] पड़ोसी के घर के चिराग को देखनें से अपनें घर में रोशनी होना संभव है ...... [ग] अपनें घर में रोशनी के लिए अपना चिराग जलाना ही पड़ता है ...... [घ] दूसरों की कमी देखनेवाला अपनी कमियों से बंचित रह जाता है ....... [च] तनहा ब्यक्ति जब अपनें तनहाई की मूल को समझता है तब वह तनहा नही रहता ...... [छ] भोग के दर से भागा योगी नही बन सकता और रूप - रंग एवं राग को समझनें वाला भोगी नही रह सकता ...... [ज] खुशियों को बाटनें वाले अनेक हैं लेकीन लेनें वाले कितनें हैं ...... [झ] अपनें गम को भुलानें के लिए किसी और को मत खोजो , स्वयं को साथी बना लो ....... [प] लोगों की कमजोरी को देखनें वाले स्वयं को मजबूत कैसे बना सकते हैं ? ........ [फ] जो हमारे पास नहीं है , वह प्यारा है , यह भ्रम हमें बेचैन बना रखा है ........ गीता प्रेमियों के लिए गीता अमृत में दस बातें दी गयी है , आप को जो प्रिय लगें उनको आप अपना कर अपनें जीवन में उनका प्रयोग करे । गीता संन्यास का मार्ग है और संन्यास जब मिलता है ------ ## पीठ भोग संसार की ओर ह

गीता अमृत - 87

जीवन ज्योति [क] कहीं अपनें को छिपाते - छिपाते जीवन न सरक जाए ..... [ख] मंदिर को घर न बनाओ , कोशिश करो - घर को मंदिर बनाने में ..... [ग] मूर्ति के साथ बैठते - बैठते ध्यान में मूर्तिवत होना - अपरा भक्ति से परा में पहुँचना है ..... [घ] उस घडी का इंतज़ार करो , जब न तन हो न मन हो , यह स्थिति है , प्रभुमय होने की ..... [च] दुसरे की गलती पर स्वयं को सताना , मन की गुलामी है ...... [छ] अपनीं गलती हो और हम किसी और को सताएं , यह पाप है ..... [ज] जबतक मैं और तूं में हम हैं , प्रभु हमसे दूर है ....... [झ] अकेलापन या तो प्रभु से मिला देता है या पागल बना देता है ..... [क-१] अहंकार दुःख की जड़ है ..... [क-२] मोह और भय साथ - साथ चलते हैं ..... दस सूत्र आप को यहाँ मिल रहे हैं , आप इन सूत्रों को एक - एक करके अपनाएं और अपनें जीवन में इनकी छाया को देखते रहें , धीरे - धीरे आप द्रष्टा बन जायेंगे ॥ ===== ॐ ======

गीता अमृत - 86

गीता प्रेम पुष्प [क] स्वयं पर ठहरना , ध्यान है और पर पर ठहरना , भोग है । [ख] संसार एवं विज्ञान तर्क आधारित हैं और दोनों का नाभि केंद्र - प्रभु , तर्कातीत है । [ग] शास्त्रों का ज्ञान यदि अहंकार की जननी बनें तो वह ज्ञान नहीं , अज्ञान होता है । [घ] बुद्धि - चेतना के मध्य का पर्दा जब होश में उठता है तब वह ब्यक्ति बुद्ध होता है । [च] बुद्धि - चेतना के मध्य का पर्दा जब बेहोशी में उठता है तब वह ब्यक्ति पागल हो जाता है । [छ] देह में आत्मा की खोज , घर में प्रभु की खोज बन जाती है । [ज] घर में प्रभु की खोज , सत से मिलाती है । [झ] चिंता रहित ब्यक्ति प्रभु में होता है । [क-१] अहंकार चिंता का बीज है । [ख-१] मनुष्य अपनें अंत समय तक खोज में रहता है , आखिर वह क्या खोज रहा है जिसमें उसका जीवन सरकता चला जाता है लेकीन वह मिलता भी है , कहना कुछ सही न होगा । [ग-१] मनुष्य पृथ्वी पर सम्राट है लेकीन सम्राट होते हुए भी भिखारी की तरह क्यों रहता है ? [घ-१] मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो मंदिर में भी भीख माँगता है , क्यों ? इश्वर खोज का बिषय नहीं है , इश्वर सब का आदि मध्य और अंत है । खोजा उसे जाता है जो दूर ह

गीता अमृत - 85

कहीं और चलें ----- [क] हर पल बदलते रहनें का नाम है - प्रकृति ........ [ख] मनुष्य समस्याओं से हर पल घिरा हुआ है , अहंकार का परिणाम है , समस्याएं ....... [ग] मनुष्य समस्यायों से भागता है लेकीन भाग कर जाएगा भी कहाँ ....... [घ] मनुष्य स्वयं को नहीं , बासनाओं के बिषयों को बदलता रहता है जो स्वयं को धोखा देना जैसा है ...... [च] गुणों का सम्मोहन ही बासना है ......... [छ] बासना दुस्पुर है ..... [ज] भोगी का परमात्मा देता है और योगी का परमात्मा द्रष्टा है ....... [झ] परम प्रीति में डूबा बिना बोले लोगों को आकर्षित करता है ...... ===== ॐ =====

गीता अमृत - 84

सत्य की किरण ----- [क] भ्रम - संदेह में सत्य की खोज , स्वयं में एक भ्रम है और विज्ञान संदेह के आधार पर सत खोज रहा है । [ख] सत को खोज का बिषय बनाना , अहंकार की छाया है । [ग] असत्य का आत्मा , सत्य है । [घ] कोई सत्य ऐसा नहीं जिस पर असत्य की चादर न पड़ी हो । [च] भोगी के लिए सत में कोई रस नहीं और योगी सत के रस को अमृत कहता है । [छ] भाव असत हैं और सत भावातीत है । [ज] भाव सत में पहुँचानें का काम कर सकते हैं यदि भावों में होश पैदा हो सके । [झ] सत की किरण भ्रम के अँधेरे को दूर करती है । ===== ॐ ======

गीता अमृत - 83

गीता सन्देश ----- [क] मोह के साथ बैरागी बननासंभव नहीं -- गीता - 2.52 [ख] बैराग्य बिना संसार का बोध नहीं ........... गीता - 15.3 [ग] चिंता करता का प्रतिबिम्ब है [घ] करता भाव अहंकार से आता है .............. गीता - 3.27 [च] चिंता और चिता में मामूली सा अंतर है [छ] चिंता चिता को आमंत्रित करती है [j] प्रभावित ब्यक्ति चिंता में रहता है [झ] वह जिसका केंद्र भोग है , वह चिंता में जीता है [क-१] प्रभु केन्द्रित ब्यक्ति चिंता रहित होता है [ख-२] चिंता मुक्त होने के लिए मंदिर एक दवा है [ख-३] मंदिर से वापस आते समय यदि कोई चिंतित है तो उसका मंदिर जाना ब्यर्थ है काम , कामना , क्रोध , राग , लोभ , मोह , भय , अहंकार रहित ब्यक्ति ---- प्रभु केन्द्रित परम आनंद में होता है लेकीन ---- ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं ॥ ===== ॐ =====