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गीता मर्म - 23

वासना - उपासना गीता बुद्धि - योग में प्रवेश पाने के लिए गीता में प्रभु के द्वारा प्रयोग किये गए शब्दों के माध्याम से शब्दातीत की स्थिति में पहुँचना पड़ता है । प्रभु अर्जुन को कहते हैं -- सकाम कर्म से निष्काम कर्म में झांको , साकार भक्ति के माध्यम से निराकार भक्ति में पहुँचो , गुणों के माध्यम से निर्गुण को पहचानों और वासना के माध्यम से उपासना में देखो । गीता द्वैत्य के माध्यम से अद्वैत्य में पहुंचाना चाहता है जो अस्तित्व का अपना रूप है । गीता सूत्र - 13.15 में प्रभु कहते हैं ------ वह जो इन्द्रियों का श्रोत है पर है इन्द्रिय रहित ...... वह जो सब का पालन हार है पर है अनासक्त ......... वह जो गुणों का श्रोत है पर है गुनातीत , वह है ..... परमात्मा ॥ यात्रा वहां से संभव है जहां हम वर्तमान में हैं और मनुष्य का वर्तमान है , वासना एवं लक्ष्य है , उपासना । वासना की हमारी जो नकली मित्रता है उसमें होश मय होने का नाम है , उपासना । वासना और उपासना को इस उदाहरण से समझते हैं ------- नरेन्द्र [ स्वामी विविका नन्द ] एक गरीब परिवार से थे । वे अपनी आर्थिक मजबूरी की बात स्वामी परमहंस जी से प्रायः कहा करत