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गीता में दो पल - 5

1- असीम बुद्धि मिली हुयी है ,आप को । यक़ीनन यह पल आपको दुबारा नहीं मिलनें वाला , जितनी दूरी तय कर सकते हो , कर लो ,बादका पछतावा आपके काम न आयेगा ।अनंतकी यात्राके लिए आप बुद्धि मार्गको अपनाया है और आज बुद्धि प्रधान युग चल रहा है , आपके कदम हैं तो सही मार्ग पर यह मार्ग हैं , दुर्गम । 2- बुद्धि मार्गी धीरे - धीरे पहले बाहर से अकेला होता जाता है और जब पूर्ण एकांत उसे भा जाता है तब --- 3- उसकी साधनाका अगला चरण प्रारम्भ होता है। अगले चरण में अन्दर से रिक्त होना प्रारम्भ हो जाता है। 4- बाहरकी रिक्तताको समझना बहुत आसान तो नहीं लेकिन समझा जा सकता है लेकिन अन्दरकी रिक्तता मनुष्य को द्विज बना रही होती है । ** द्विज क्या है ? द्विज का अर्थ है , दुबारा जन्म लेना । दुबारा जन्म वही ले सकता है जो पहले मरे और कोई मरनें को कितनी आसानी से स्वीकार सकता है ,यह सोचका बिषय है । 5- अन्दरकी रिक्ततामें दो द्वार खुलते हैं ; एक सीधे बोधिसत्व में पहुँचाता है और दूसरा द्वार जिसके आकर्षणसे बचना अति कठिन होता है , वह पागलपन में पहुँचाता है । ** आप अपनें बुद्धि - योग साधना में हर पल होश बनाए रखें । ~~ ॐ ~~

गीता मर्म - 35

सांख्य - योग गीता में सांख्य , ज्ञान , ये दो शब्द बार - बार आप को मिलेंगे , कुछ लोग सांख्य को ज्ञान कहते हैं , लेकीन यह सांख्य है क्या ? ईसा पूर्व लगभग 200 - 300 वर्ष , सांख्य साधना का एक मार्ग था लेकीन आज इसका नाम न के बराबर ही है । भारत के धर्माचार्य लोग जिसको मारना होता है उसकी पूजा करवानें लगते हैं । भागवत पुराण में कृष्ण के अवतार के रूपमें बुद्ध को देखा गया है और शिव पुराण में कहा गया है :----- स्वर्ग और नरक की रचना करनें के बाद प्रभु नरक की जिम्मेदारी यमराज को दिया । जब काफी समय तक नरक में कोई न पहुंचा तो एक दिन यमराज प्रभु के दरबार में उपास्थित हुए और प्रार्थना की :---- प्रभु हमारे पास अभी तक कोई एक भी न आया और स्वर्ग लोक भरा पडा है , मैं अकेले वहाँ क्या करू ? प्रभु बोले , आप चिंता न करें , कलियुग में बुद्ध नाम से मैं आउंगा , लोग मुझे बुद्ध के रूप में पुजेगे और सभी नरक में जायेंगे और आप का नरक हमेशा भरा रहेगा , चिंता करनें की कोई बात नहीं है । आप नें देखा ! बुद्ध को प्रभु तुल्य भी बना दिया और --------- भारत से सांख्य का सफाया कर दिया गया लेकीन गीता का सफाया करना कठिन था जबकि गी