गीता मर्म - 35


सांख्य - योग

गीता में सांख्य , ज्ञान , ये दो शब्द बार - बार आप को मिलेंगे , कुछ लोग सांख्य को
ज्ञान कहते हैं ,
लेकीन
यह सांख्य है क्या ?
ईसा पूर्व लगभग 200 - 300 वर्ष , सांख्य साधना का एक मार्ग था लेकीन आज
इसका नाम
न के बराबर ही है ।
भारत के धर्माचार्य लोग जिसको मारना होता है
उसकी पूजा करवानें लगते हैं ।

भागवत पुराण में कृष्ण के अवतार के रूपमें बुद्ध को देखा गया है और
शिव पुराण में कहा गया है :-----
स्वर्ग और नरक की रचना करनें के बाद प्रभु नरक की जिम्मेदारी यमराज को दिया ।
जब काफी समय तक
नरक में कोई न पहुंचा तो एक दिन यमराज प्रभु के दरबार में उपास्थित हुए
और प्रार्थना की :----
प्रभु हमारे पास अभी तक कोई एक भी न आया और स्वर्ग लोक भरा पडा है ,
मैं अकेले वहाँ क्या करू ?
प्रभु बोले , आप चिंता न करें , कलियुग में बुद्ध नाम से मैं आउंगा , लोग मुझे बुद्ध के
रूप में पुजेगे और सभी
नरक में जायेंगे और आप का नरक हमेशा भरा रहेगा , चिंता करनें की कोई बात नहीं है ।
आप नें देखा ! बुद्ध को प्रभु तुल्य भी बना दिया और ---------
भारत से सांख्य का सफाया कर दिया गया लेकीन गीता का सफाया करना
कठिन था जबकि
गीता सांख्य - योग
का दूसरा नाम है ।
संख्या यदि समाप्त न हुआ होता तो भारत में आइन्स्टाइन जैसे लोग बीसवी शताब्दी में
पैदा होते लेकीन यहाँ
का भक्ति - मार्ग न प्रभु से मिला पाया न विज्ञान को पैदा कर पाया ॥
लोग सोचते हैं - भक्ति एक आसान सा मार्ग है जबकि यह सबसे कठिन मार्ग है ;
साकार भक्ति से निराकार
भक्ति में कोई - कोई पहुंचता है, अन्य सभी मंदिर के बाहर ही रह जाते हैं ॥

==== ॐ ======



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