गीता मर्म - 26


गीता के चार श्लोक -----

[क] श्लोक - 2.52
मोह के साथ बैरागी बनना संभव नहीं ॥

[ख] श्लोक - 2.51
चाह रहित कर्म मुक्ति पथ है ॥

[ग] श्लोक - 2.50
योग से कर्म कुशलता इतनी बढ़ जाती है की गलत काम हो नहीं सकते ॥

[घ] श्लोक - 2.49
जैसे कंजूष ब्यक्ति कर्म - फल से चिपका रहता है वैसे बुद्धि योगी अपनी चेतना से बाहर नहीं आना चाहता ॥

गीता के चार श्लोक बुद्धि - योग में प्रवेश के लिए काफी नजर आते हैं ।

बुद्धि के सम्बन्ध में प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं .......
मेरे पास भी उतनी ही बुद्धि है जितनी सब के पास ,
मैं बुद्धि का प्रयोग करनें में कंजूष नहीं हूँ और लोग कंजूसी से बुद्धि का प्रयोग करते हैं ॥

==== ॐ =====

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