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Showing posts from June, 2009

मोह को समझो

मोह गीता का मुख्य बिषय है , अर्जुन के मोह को दूर करनें के लिए परम गीता-ज्ञान दिया तो आइये देखते हैं गीता में मोह क्या है? १- मोह , मन, मोहित और मोहन को जानों। २- जो है वह जानें न पाये का भय , मोह है। ३- मोह, भय और आलस्य तामस गुन के तत्त्व हैं । ४- हम मुट्ठी खोलना नहीं चाहते और बंद मुट्ठी में उसको लाना चाहते हैं जो मुट्ठी में नहीं है - यह कैसे सम्भव है ? हम बंद मुट्ठी को इस भय से खोलना नहीं चाहते की जो इसमें बंद है वह कहीं सरक न जाए और यही भय मोह है। तुलसी का राम चरित मानस आप पढ़ते होंगे, राजा दशरथ मोह में अपना शरीर त्यागा और गीता श्लोक 14.15 कहता है किऐसे ब्यक्ति को कीट,पतंग या पशु कि योनी मिलती है तो क्या श्री राम के पिता को आगे इन योनिओं में से कोई एक योनी मिली होगी?---उत्तर आप को खोजना है । मोह कि पहचान मोह कि पहचान को समझनें के लिए देखिये गीता श्लोक 1.27-1.30 तक को । अर्जुन कहते हैं ---हमारे शरीर में कम्पन हो रहा है , त्वचा जल रही है , गला सूख रहा है और मन भ्रमित हो रहा है। गीता का कृष्ण एक सांख्य - योगी है और ऐसा योगी समत्व योगी होता है जो भावों से प्रभावित नहीं होता । अर्जुन कि

स्वभाव क्या है ?

यहाँ हमें गीता के इन श्लोकों को देखना चाहिए ------ 2.45,3.27,3.33, 14.19,14.23,18.59,18.60 , 8.3 जब हम इन श्लोकों को अच्छी तरह से देखते हैं तब हमें गीता यह देता है .......... स्वभाव दो तरह का होता है; एक परिवर्तनशील स्वभाव है और दूसरा स्थाई । अस्थाई स्वभाव हमारे अंदर के गुन समीकरण से बनताहै , गुन-समीकरण हर पल बदलता रहता है । अस्थाई स्वभाव से कर्म होते हैं और ऐसे कर्म भोग कर्म होते हैं । भोग कर्मों में भोग-तत्वों के प्रति होश बनाना ही कर्म योग है । होश बन जानें के बाद भोग-कर्म योग कर्म में बदल जाते हैं और तब हमें-------- अपना मूल स्वभाव मिलता है जिसको गीता अध्यात्म कहता है [8.3 ] । संसार से अपनें केन्द्र - ब्रह्म तक पहुँचना तब संभव है जब हमको अपना मूल स्वभाव मिल जाता है । आज से हमें अपनें मूल स्वभाव को खोजना है वह भी गीता के माध्यम से । ====ॐ=====

गीता तत्त्व-विज्ञानं एक राह हैं

गीता तत्त्व विज्ञानं -राह रोमांचित चौराहों से गुजरती है ,आइये देखते हैं कुछ झलकियाँ । राग से वैराग काम से राम आसक्ति से समभाव साकार से निराकार वासना से प्यार मैं से तूं अंहकार से प्रीति अज्ञान-से ज्ञान भोग से योग भाव से सम भाव सम भाव से भावातीत विकार से निर्विकार ......... की यात्रा का नाम गीता तत्त्व विज्ञान है । =====ॐ=====

गीता योगी कौन है ?

१- गीता योगी गीता पढ़ता नही , गीता में बसता है । २- पढ़नें वाला और गीता में कुछ दूरी होती है - वहाँ दो होते हैं और बसाहुआ स्वयं गीतामय होता है , उसकी हर श्वाश से गीता अंदर जाता है और बाहर निकलता है । ३- भोग की दौड़ जब माथे पर आये पसीनें को सुखनें नहीं देती तथा ऐसा लगनें लगता है की मै आगे नहीं पीछे जा रहा हूँ तब अन्तः करण में गीता की किरण फूटती है । ४- जिसनें इस किरण को पहचान लिया , वह बन गया बैरागी , जानलेता है क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ के रहस्य को और आ जाता है समत्व-योग में तथा जो नहीं देख पाता वह भोग में और अधिक गति से भागनें लगता है । ५- गीता-योगी गीता के श्लोकों का भाषांतर नहीं करता वह भाषा रहित गीता भाव में बहता रहता है । ६- गीता योगी के पास भाषा का अभाव होता है लेकिन जो जागनाचाहते हैं वे गीता-योगी के नजदीक होनें पर स्वयं जग जाते हैं । ७- सिद्धि प्राप्त योगी radio active matters - राज धर्मी पदार्थों की तरह होते हैं जिनके तन से चेतन मय फोतोंस [photons] का विकिरण होता रहता है , जो लोग इस क्षेत्र में आते हैं उनको गीता सुनना नही पड़ता उनमें गीता की ऊर्जा स्वतः भर जाती है । ८- गीता-योगी द्रष्

गीता क्या है ?

धर्म क्षेत्र कुरुक्षेत्र में कौरव तथा पांडव के सेनाओं के मध्य अर्जुन के मोह को समाप्त करनें की दृष्टि से परम श्री कृष्ण एवं अर्जुन के माध्यम से ज्ञान-योग तथा कर्म-योग का जो मार्ग निकलता है उसका नाम श्रीमदभगवद गीता है । गीता में 700 श्लोक हैं - 556 श्लोक परम श्री कृष्ण के हैं , 103 श्लोक अर्जुन के हैं , 40 श्लोक संजय के हैं और एक श्लोक ध्रितराष्ट्र का है । गीता में अर्जुन के 16 प्रश्न हैं जिनका उत्तर परम श्री कृष्ण देते हैं । एक बात आपको समझनी है ---गीता महाभारत नहीं है अतः गीता के सन्दर्भ में महाभारत का सहारा न लें । गीता शांख्य-योग की गणित है , इसमें कहानियाँ नहीं हैं लेकिन लोग इसको भी कहानियों में ढाल दिया है । गीता प्रत्येक हिन्दू परिवार में होता है लेकिन लोग इसको पढ़ते नहीं हैं , पूजते हैं । गीता की पूजा से क्या होगा , यह तो जीवन जीनें की नियमावली है । गीता जैसा है ठीक उसी तरह पढनें से कुछ नहीं मिल सकता, गीता पढ़नें की कला को समझना चाहिए । गीता जन्म से मृत्यु तक , भोग से वैराग तक , भोग-कर्म से योग-कर्म तक , भाव से भावातीत तक तथा गुणों से गुनातीत तक का मार्ग है । क्या आप परम श्री

What is gitatatvavigyan ?

Gitatatvavigyan is a pathless journey starting from where we are and merges in- which is at present unknown and will remain unknown till this human civilisation exists. Gitatatvavigyan is an attempt to get that, which is not possible to be captured by mind- mechanism. Before Einstein everything was limited in three coordinated frame but Einstein said,timespace is a frame of four coordinates. Gitatatvavigyan will explain that timespace is a two coordinated frame....are you ready to enjoy this new gitavigyan of 5561 years which is available as shamkhya-yoga in our vedas ? Shamkhya explains,prakrit and purush-two coordinated one which is infinite and not affected by the time is MAYA. Maya is of three gunas and every particle of the universe contain three gunas.Prakrit is of two types;APARA AAND PARA. Apara has eight elements and Para is universal singular consciousness. At present science is trying to understand the mystery of the universe,but gita says... jiv aur brahmand ki rachana ek j