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गीता कहता है

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गीता अध्याय - 02

Title :गीता अध्याय - 02 Content: >>गीता अध्याय - 02 72 --------------------------- * 2.1> संजय : करुणा में डूबे , ब्याकुल अर्जिन से प्रभु यह बात कही :--- * 2.2,2.3 > प्रभु :यह असमय में मोह कैसा , जो आर्य पुरुषों द्वारा न आचरित है , न स्वर्ग की ओर ले जाने वाला है और न कीर्ति दिला सकता है अतः ह्रदय की दुर्बलता त्याग कर युद्ध के लिए तैयार हो जा । * 2.4 > अर्जुन : भीष्म एवं द्रोणाचार्य के खिलाफ कैसे लडूं , दोनों पूजनीय हैं (सूत्र-1.25अर्जुन का रथ इन दोनों के सामने ही खड़ा है ) । *2.5 > महानुभाव ! गुरुजनों को न मार कर इस लोक में भिक्षा के माध्यम से जीविकोपार्जन करना उत्तम समझता हूँ । गुरुओ को मार कर उनके खून से सने भोग को ही तो भोगना होगा । *2.6 > मुझे कुछ पाया नहीं चल रहा की युद्ध करू या न करू , इन दो में कौन उत्तम है , कौन जीतेगा और कौन हारेगा , कुछ पता नहीं चल पा रहा , धृत राष्ट्र के पुत्रों को मार कर मैं जीना भी नहीं चाहता । * 2.7 > अर्जुन : मेरा चित्त घोर सम्मोहन में है , मैं युद्ध कैसे करू, मैं आपका शिष्य - मित्र हूँ , आप मुझे उचित शिक्षा दें । *2.8...