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गीता मर्म - 07

कौन स्वप्न नहीं देखता ? गुनातीत योगी स्वप्न नहीं देखता ॥ भगवान् महाबीर एक शब्द प्रयोग करते थे - निर्ग्रन्थ ; महाबीर का निर्ग्रन्थ योगी , गीता का गुनातीत योगी है । निर्ग्रन्थ योगी वह है ------ ** जिसकी इन्द्रियाँ उसके इशारे पर चलती हों । ** जिसके मन की भूत काल एवं वर्त्तमान काल की सोच की कोई लकीर न हो , मन निर्मल हो । ** जिसकी बुद्धि संदेह रहित हो । ** जो सात्विक श्रद्धा से परिपूर्ण हो । ** जो प्रभु का दीवाना हो चुका हो । ** जिसको प्रकृति में प्रभु के अलावा और कुछ न दिखता हो । खोजना है तो प्रभु को ऐसे खोजो जैसे एक मित्र अपनें मित्र को खोजता है .... प्रभु की लहर मिलते ही नमक के पुतले की तरह अपनें को उनमें घुला दो ..... प्रकृति में जो आप को मंत्र मुग्ध कर दे , बस उसके ऊपर अपनें को संदेह रहित हो कर अर्पित कर दो ..... पंडित हरी प्रसाद की बासुरी में आप को कुछ - कुछ प्रभु श्री कृष्ण की बासुरी की धुन मिलेगी , आप जरुर सुनें ... प्रभु तो आप के लिए इंतज़ार कर रहे हैं लेकीन आप को मौका मिले तब न ...... चौबीस घंटों में कुछ पल अपनें मन को प्रभु पर केन्द्रित करनें से क्या नुकशान होगा ? ====== ॐ =