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मृत्यु का भय .......

मृत्यु से कम लोग , मृत्यु के भय से ज्यादा लोग मरते हैं जुनैद [857 - 922 AD ] जो मंसूर के गुरु थे , एक दिन एक पहाड़ी पर डूबते सूर्य को देख रहे थे । कुछ- कुछ अँधेरा हो रहा था , उनको एक काली छाया उधर से जाती हुयी नज़र आई । जुनैद उस काली छाया से पूछते हैं --- मौत ! तू इस समय कहाँ जा रही हो ? मौत बोली , जुन्नैद ! मैं कुछ आदमियों को लेनें सामनें वाले गाँव में जा रही हूँ । कुछ दिन गुजर गए , मौत पुनः उस रास्ते से वापस आ रही थी , जुन्नैद पूछते हैं ----तूं तो कुछ की बात कर रही थी , लेकीन वहाँ तो काफी लोग मरे , बात क्या है , क्या तुम मुझसे झूठ बोली थी ? मौत कहती है ------- मैं तो कुछ लोगों को मारा बाकी सब डर के कारण स्वतः मर गए , मैं क्या कर सकती थी ? मृत्यु एक परम सत्य है ........ मृतु से भाग कर जाना कहाँ है ? मृत्यु तो सब की होनी ही है , चाहे वह ----- लोक हों .... चाँद-सूर्य हों ... या हम हों । मृत्यु का विज्ञानं गीता सिखाता है , क्या आप सीखना चाहते हैं ? =====ॐ=======