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गीता यात्रा

गीता कहता है ------ जिसमें सभी भूत जगे हुए होते हैं , योगी उसमें सोया रहता है और जिसमे सभी भूत सोये होते हैं , योगी उनमें जगा होता है गीता - 2.69 क्या है वह ? क्या वह भोग - योग है ? क्या वह परमात्मा है ? परमात्मा को याद करो - ऎसी बात आप तौर पर सुननें को मिलती है लेकीन ज़रा सोचना ...... आप कैसे परमात्मा को याद कर सकते हैं ? क्या आप उसको जानते हैं ? क्या अप उसको पहचानते हैं ? क्या आप उसकी आवाज से वाकिब हैं ? क्या आप उसकी गंध को पहचानते हैं ? क्या आप उसके रूप - रंग से वाकिब हैं ? आखिर आप उसे कैसे पहचानेंगे ? सीधे परमात्मा पर पहुँचना तो संभव नहीं लेकीन ..... कलाकार को पहचानना हो तो उसकी कला से दोस्ती करना पड़ता है । कलाकार कहीं न कहीं अपनें कला में होता ही है और प्रभु की कला है - यह संसार । संसार जैसा ठीक - ठीक वैसा जो देखनें में सक्षम है उसके लिए प्रभु दूर नहीं रहते और संसार को जो अपनें नज़र से देखते हैं , उस नज़र से जिसमें भ्रम की ऊर्जा प्रवाहित हो रही होती है , वे चूक जाते हैं , संसार को पहचाननें में । संसार को देखो लेकीन मन उस घड़ी भाव रहित स्थिति में हो और तब ...... आप किस आयाम में रह...