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गीता मर्म - 19

गीता अध्याय 11 श्लोक -- 01 से 04 तक अर्जुन कहते हैं ...... आप की बातें सुननें से मेरा मोह समाप्त हो गया है , लेकीन मैं आप के आश्वर्य , अब्यय रूप को देखना चाहता हूँ । मैं नहीं मानता की गीता का अर्जुन श्री कृष्ण का परम भक्त है और जो परम भक्त समझते हैं वे स्वयं तो अन्धकार में हैं ही सुननें / पढ़नें वालों को भी अन्धकार में डालनें की कोशिश कर रहे हैं । अर्जुन इस प्रश्न से पहले अध्याय - 10 में प्रभु से 32 श्लोकों में 92 उदाहरणों के माध्यम से प्रभु के बिभिन्न साकार एवं भावात्मक स्वरूपों के सम्बन्ध में जाना लेकीन अभी भी संतुष्ट नहीं हो पा रहे हैं । अध्याय - 10 में अर्जुन यह भी कहते हैं ------ आप परम ब्रह्म , परम धाम , आदि देव , शाश्वत पुरुष , दिब्य , अजन्मा हैं , आप के गुण को ऋषि नारद , ब्यास , देवल , असित गाते हैं । अर्जुन इतनी बातें करनें के बाद प्रश्न करते हैं -- मैं आप को किन - किन रूपों में जानूं और मैं आप को कैसे स्मरण करूँ ? अर्जुन बचपन से साथ रहे हैं , प्रभु उनके मामा के पुत्र हैं , लेकीन युद्ध - क्षेत्र में पहुंचकर प्रभु को जानना चाहते हैं , क्या यह उचित दिखता है ? गीता का अर्जुन हम -