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गीता - यात्रा

उसका द्वार कभी बंद नहीं होता ----- He lives in a gateless gate तन की निर्मलता से मन की निर्मलता संभव है ----- मन की निर्मलता प्रभु का द्वार है ...... जिसमें ----- प्रवेश अहंकार को नहीं मिलता ----------- प्रवेश मिलता है , सात्त्विक श्रद्धा को ॥ अब आप देखिये गीता के तीन सूत्रों को ..... सूत्र - 8.12 , 8.13 , 5.13 कों, जो कहते हैं -------- एकांत स्थान में ..... जहां प्रकृति और आप के अलावा और कोई न हो ....... दो घड़ी किसी साफ़ - सुथरी जगह में बैठें ..... आँखों कों बंद रखें , अच्छा होगा यदि तीन - चौथाई आँखें बंद हों ..... मन कों अपनें ह्रदय में स्थापित करें ..... प्राण वायु के माध्यम से ॐ की धुन कों अपनें तीसरी आँख पर स्थापित करनें का प्रयत्न करें ...... ॐ की लय जैसे - जैसे नीचे से ऊपर की ओर उठती है , देह की प्राण ऊर्जा उसके साथ ऊपर उठनें लगती है और ..... इन्द्रियाँ द्रष्टा बननें लगती हैं ...... सारा बदन एक मूर्ति की तरह हो जाता है ..... और जब ----- तीसरी आँख से ऊपर सहस्त्रार की ओर ॐ की धुन चढ़नें लगती है तब ..... जो होता है उसको मैं कैसे बता सकता हूँ , लेकीन ..... इस योग में जो अपनें देह को