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गीता अमृत - 76

प्रभु का प्रसाद किसको मिलता है ? [क] गीता - 18.54 - 18.56 ..... क्या परमात्मा से परमात्मा में केन्द्रित परा भक्त को ? [ख] गीता - 2.48 - 2.51 ......... क्या आसक्ति रहित समभाव वाले को परम गति के रूप में ? [ग] गीता - 6.29 - 6.30 ......... क्या सब में प्रभु को देखनें वाले को जिसके लिए प्रभु निराकार नहीं रहता ? [घ] गीता - 9.29 .................... क्या परम प्यार में डूबे हुए को जिसमें प्रभु स्वयं झांकता है ? [च] गीता - 12.8. 12.3 - 12.4... क्या उसको जो ध्यान के माध्यम से मन - बुद्धि से परे की अनुभूति में होता है ? [छ] गीता - 13।30 ................... क्या उसको जो सभी जीवों में प्रभु को देखता है ? [ज] गीता - 7.3, 7.19, 12.5 लेकीन ऐसे योगी जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को ब्रह्म के फैलाव रूप में देखते हैं , दुर्लभ योगी होते हैं । परम प्रीति वाला ..... गुणों से अप्रभावित रहनें वाला .... काम क्रोध , लोभ , मोह एवं अहंकार से अछूता ब्यक्ति .... प्रभु से प्रभु में संतुष्ट रहनें वाला प्रभु के प्रसाद रूप में परम आनंद में रहता है । ===== ॐ =======