भोग तत्त्व - 02
कामना पहले , आसक्ति में बताया गया ----- आसक्ति कामना का बीज है , और अब ---- हम देख रहे हैं की ---- कामना क्या है ? बुद्ध कहा करते थे :------ कामना दुष्पूर होती है अर्थात ...... कामना वह है , जिसका प्रारम्भ तो है लेकीन अंत न हो ॥ एक कामना दुसरे को , दूसरी तीसरी को जन्म देती चली जाती है कामनाओं में घिर कर मनुष्य स्वयं को खोता चला जाता है , और उस दिन , जब ------ यम राज सामनें खड़े होते हैं तब सारी दुनिया को खरीदनें की औकात वाला भी एक पल की भीख मांगता है की एक पल और मिल जाए तो वह, वह काम करलें जो अधूरा है , लेकीन -------- कामनाएं हमें ठीक उस तरह फुसलाती है जैसे हम बच्चों को फुसलाते हैं । कामना करना तो ठीक है लेकीन कामना का गुलाम बन कर जीवन गुजारना , ठीक नहीं , यह एक नशा है । प्रभु के आयाम में कदम रखनें वाला भी कामना से यात्रा करता है और नरक में जानें वाला भी कामना की खिडकी से टिकट लेता है । कामना में उठी होश , प्रभु के द्वार को दिखाती है , और .... कामना का गंभीर नशा ...... नरक को स्वर्ग बताते हुए आगे - आगे भगाते हुए एक दिन ---- नरक के मध्य में खडा कर देता है ॥ अगले अंक में कामना की क...