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गीता श्लोक - 2.45

त्रैगुन्य विषया वेदा निस्त्रे गुण्य: भाव अर्जुन । निर्द्वंदो नित्यसत्त्वस्थो निर्योगक्षेम आत्मवान ॥ वेद तीन गुणों एवं उनके तहत कर्मों का गुणगान करते हैं लेकीन हे अर्जुन ! तूं इन गुणों के सम्मोहन से परे निकल और तब ..... तूं जो देखेगा ----- वह होगा परम सत्य ॥ यहाँ तीन शब्दों को आप अपने ध्यान का माध्यम बनाएं और वे हैं ----- [क] नित्यसत्त्व [ख] योगक्षेम [ग] आत्मवान पहले शब्द में आप सात्विक गुण को न खोजें क्यों की सात्विक गुण भी एक बंधन ही है जिसको भी पार करना ही गीता - साधना है । योगक्षेम का अर्थ है ---- acquisition of the new and preservation of the old . और .... आत्मवान का अर्थ है ----- to understand whom am i ? आज इतना ही ..... ==== ॐ ====