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गीता, अर्जुन एवं श्री कृष्ण

गीता के अर्जुन एक सामान्य सांसारिक ब्यक्ति हैं जो उसको छोड़ना नहीं चाहते जो उनको पकड़ रखा है । गीता के श्री कृष्ण गुणातीत स्थिर प्रज्ञ साँख्य- योगी हैं । श्री कृष्ण एवरेस्ट से बोलते हैं और उनको सुननें वाला नीचे तराई में है जिसके ऊपर- ऊपर से बातें निकल जा रही हैं । अर्जुन प्रारंभ में जिस युद्ध से वे भागना चाहते हैं उसे ब्यापार उद्ध कहते हैं [ देखिये गीता - 1.22 ] , श्री कृष्ण उस समय तो चुप रहते हैं लेकिन बाद में [ देखिये गीता - 2.31....2.33 ] इस उद्ध को धर्म - उद्ध कहते हैं । अर्जुन और श्री कृष्ण की सोचों में यह बुनियादी अन्तर है । अर्जुन शास्त्रों के आधार पर कहते हैं ---इस उद्ध से हम सब का जाति- धर्म एवं कुल - धर्म नष्ट होगा [ देखिये गीता- 1.40.....1.46 ] , श्री कृष्ण जाति -धर्म तथा कुल- धर्म के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहते बस इतना कहते हैं ---तूं पंडित शब्द का अर्थ तो जानता नहीं पर पंडितों जैसी बातें करता है [ देखिये गीता- 2.11 ] और बाद में स्व - धर्म एवं पर- धर्म की बात जरुर करते हैं [ देखिये गीता- 3.35 , 18.47 ], अब आप सोचिये की इस उद्ध में स्व कौन हैं ? और पर कौन हैं ? दोनों दल एक परि