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गीता अमृत - 9

कर्म रहित होना क्या है ? वासना से प्यार में पहुँचना कर्म - योग है और ---- प्यार से वासना में गिर जाना , नरक है ----और अब गीता ...... चिंता रहित हो कर कर्म करना , कर्म रहित होना है , यह है गीता - अमृत की एक बूँद [क] गीता सूत्र - 3.4 - 3.5, 18.11, 18.49 - 18.50, कहते हैं ----- कर्म को न करके कर्म - निष्कर्मता नहीं मिलती जो ज्ञान - योग की परा - निष्ठा है । [ख] गीता सूत्र - 3.5, 2.45, 3.27, 3.33 करता - भाव अहंकार की छाया है , गुण कर्म - करता हैं और ऐसे कर्म , भोग होते हैं । [ग] गीता सूत्र - 2.14, 5.22, 18.38, 18.48 भोग कर्मों में क्षणिक जो सुख मिलता है उसमें दुःख का बीज होता है । सभी कर्म दोष युक्त होते हैं लेकीन सहज कर्मों को करना चाहिए । [घ] गीता सूत्र - 2.42 - 2.44 तक वेदों में भोग - कर्मों की प्रसंशा की गयी है और भोग - कर्मों की प्राप्ति के उपाय भी दिए गए हैं । [च] गीता सूत्र - 2.46 गीता - योगी का सम्बन्ध वेदों से नाम मात्र का होता है । [छ] गीता सूत्र - 4.16 - 4.23 तक समभाव योगी कर्म में अकर्म एवं अकर्म में कर्म देखनें वाला होता है और वह पाप रहित सभी कर्मों को करनें में सक्षम होता