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अर्जुन का प्रश्न - 8, भाग ...5

सन्दर्भ श्लोक -- 10.1 से 10.16 तक * भ्रम में अटके को प्रीति की हवा छू नहीं सकती , प्रेमी को भ्रम हो नही सकता और ........ परम-प्रेमी में परमात्मा बसता है । * भ्रम प्रश्न की जननी है , अंहकार भ्रम को पालता है और ........... भ्रम राजस- तामस गुणों की छाया है । * गीता कहता है....श्लोक 6.27, 3.37, 2.52--राजस- तामस गुणों को धारण करनें वाला कभीं भी परमात्मा से नही जुड़ सकता। * प्रश्न रहित ब्यक्ति निर्विकल्प-योग में [ गीता- 10.7 ], बुद्धि-योग में [ गीता- 10.10 ] एवं समत्व- योग [ गीता-2.47 से 2.51 तक ] में होता है जहाँ उसके मन-बुद्धि एक शांत झील की तरह होते हैं। अब हम ऊपर दिए गए मूल बातों के आधार पर गीता के कुछ सूत्रों को देखते हैं जो इस प्रश्न -८ से सम्बंधित हैं # श्लोक - 10.4-10.5 + 7.12, 7.13 श्री कृष्ण कहते हैं ...सभी भाव मुझसे उठते हैं लेकिन उन भावों में मैं नहीं होता तथा मुझमें वे भाव भी नहीं होते। # श्लोक- 10.8 , 10.20 , 10.32 , 7.10 , 9.18 जो था , जो है , जो होगा सब का आदि मध्य एवं अंत , मैं हूँ । # श्लोक- 10.7 , 10.9--10.11 , 2.56 , 5.24 ,6.29-6.30 श्री कृष्ण कहते हैं .....स