संप्रज्ञात समाधि

पतंजलि योग दर्शन में समाधि क्या है ?

भाग : 01 ( संप्रज्ञात समाधि )

महर्षि पतंजलि अपनें योग दर्शन में निम्न प्रकार की समाधियों की चर्चा करते हैं ⬇️

# संप्रज्ञात समाधि 

#असंप्रज्ञात समाधि 

# धर्ममेघ समाधि 

संप्रज्ञात समाधि के संदर्भ में सवितर्क - निर्वितर्क एवं सविचार - निर्विचार समापत्तियों की भी चर्चा करते हैं । 

अब हम ऊपर व्यक्त 03 प्रकार की समाधियों और 04 प्रकार की समापत्तियोंं को समझते हैं ।

संप्रज्ञात समाधि क्या है ?

पतंजलि योग दर्शन के साधन पाद में अष्टांगयोग साधना की चर्चा की गई है । यम , नियम , आसन , प्राणायाम , प्रत्याहार , धारणा , ध्यान और समाधि अष्टांगयोग के 08 अंग हैं । यहां समाधि शब्द संप्रज्ञात समाधि के लिए प्रयोग किया गया है जो आलंबन आधारित होती है और जिसे सबीज या साकार समाधि भी कहते हैं । 

संप्रज्ञात समाधि को समझने से पूर्व धारणा और ध्यान को समझना चाहिए । 

धारणा अष्टांगयोग का 6 वां अंग है धारणा ।

चित्तको किसी देश (सात्त्विक आलंबन ) से बांध देना धारणा है (पतंजलि साधनपाद सूत्र - 1 )

" तत्र , प्रत्यय , एकतानता , ध्यानम् "

ध्यान में चित्त का  लगातार बिना किसी रुकावट ध्यान आलंबन पर समयातीत स्थिति में टिके रहना ध्यान है (पतंजलि साधन पाद सूत्र - 2 ) । 

अब देखते हैं संप्रज्ञात समाधि को ।

1.संप्रज्ञात समाधि (पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 3)

" तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं 

स्वरुपशून्यम् इव समाधि "

( व्युत्पन्न रूपः निर्भासः )

( निर्भास का अर्थ > प्रकाशित होना या उत्पन्न होना )

ध्यान में जब ध्यान आलंबन का स्वरूप शून्य हो जाय , केवल अर्थ मात्र निर्भासित हो रहा हो तब वह स्थिति संप्रज्ञात समाधि की होती है ।

संप्रज्ञात समाधि की परिभाषा को समझना होगा । आलंबन के तीन अंग होते हैं ; शब्द , अर्थ और ज्ञान । शब्द ,  आलंबन के स्थूल स्वरूप को कहते हैं जो कोई मूर्ति या मंत्र जैसे ॐ आदि हो सकता है । उदाहरण के लिए ॐ आलंबन को लेते हैं । ॐ के स्वरूप पर चित्त को केंद्रित करना और उसे ॐ से बाध कर रखना , धारणा है , उसी स्थूल स्वरूप पर चित्त का देर तक स्थिर रहना , ध्यान होता है । जब ॐ शब्द पर धारणा एवं ध्यान एक साथ घटित हो रहे हों तब शब्द ॐ का स्थूल स्वरूप शून्य हो जाय और ॐ अर्थ मात्र मन माध्यम से प्रकाशित हो  रहा हो तब उस अवस्था को संप्रज्ञात समाधि कहते हैं । 

यहां धारणा , ध्यान और समाधि साधना में साधक के चित्त में ॐ के अर्थ के संबंध में वृत्तियां आती - जाती रहती हैं और साधक का स्थूल देह निद्रा जैसी स्थिति में होता है । जब समाधि खंडित होती है तब पुनः चित्त ॐ से नहीं संसार से जुड़ जाता है । इस प्रकार जैसे - जैसे साधना का अभ्यास गहराता जाता है , संप्रज्ञात समाधि बार - बार घटित होती रहती है । परमहंस रामकृष्ण जी को दिन में कई बार संप्रज्ञात समाधि घटित होती थी । उनका आलंबन काली मां की पत्थर की मूर्ति हुआ करता था ।

~~ॐ ~~ 

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