अहंकार को समझो



आप अपनें पौराणिक कथाओं पर एक नज़र डालें -----
हमारे ऋषियों को कुछ इस ढंग से प्रस्तुत किया गया है जैसे नशे में हों , जी लोगों का काम है ----
बात - बात पर श्राप देना ...
जैसे जा तूं अगले जन्म में अजगर बनेगा ......
जा तूं अगले जन्म में छिपकली बनेगा , आदि - आदि ॥
हमारे ऋषि लोग जो अपनी सुरक्षा तो कर नही पाते , उनको बचानें के लिए अवतार होते हैं ----
संभवामि युगे - युगे [ गीता - 4।8 ]

इस से साफ़ - साफ़ जाहिर होता है की अहंकार का असर तब तक रहता है जब तक तन में प्राण है ।
गीता में प्रभु कहते हैं .......
तीन गुणों की मेरी माया है , जिसमें दो प्रकृतियाँ ; अपरा और परा हैं । अपरा प्रकृति के आठ
तत्वों में से एक तत्त्व है - अहंकार ।
अहंकार दो प्रकार के होते हैं - धनात्मक और रिनात्मक । धनात्मक अहंकार राजस गुण के तत्वों के
साथ होता है और रिनात्मा अहंकार तानस गुणों के तत्वों के साथ यात्रा करता है ।
अहंकार एक ऐसा तत्त्व है जो बैराग्यावस्था में पहुंचनें तक पीछा नहीं छोड़ता और योगी, बैराग्य से
गिर कर नीचे की योनियों में जन्म ग्रहण करता है ।
बुद्ध कहते हैं ----
हम दूसरों की गलती पर स्वयं को सजा देते हैं क्यों - क्योंकि हमारा अहंकार कमजोर होनें पर
जब दुसरे पर आक्रमण नहीं कर पता तब वह स्वयं पर आक्रमण करनें लगता है ।
अहंकार सात्विक , राजस अवं तामस - तीनों गुणों में रहता है ।
अहंकार की साधना बहुत नाजुक साधना होती है ।
आज यहीं तक ------
अगले अंक में कुछ और बातें देखेंगे ॥

==== ॐ =====

Comments

L.R.Gandhi said…
yah bhi porv janm ka pratifal hai jo hamein 'savbhav' ke roop mein milta hai. pratifal poorn hone par savbhav bhi badal jata hai-ahankaar bhi aise hi chhoot jata hai.

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