मोह सम्बंधित गीता सूत्र

यहाँ हम गीता के कुछ सूत्रों को देख रहे हैं जिनका सीधे सम्बन्ध है - मोह से ।
गीता में प्रभु के लगभग पांच सौ से भी कुछ अधिक सूत्र हैं और सब का रुख किसी न किसी तरह से
मोह की ओर ही है क्योंकि ----
गीता अर्जुन के मोह की दवा है ।

गीता सूत्र - 1.28 - 1.30 तक
यहाँ अर्जुन जो कुछ भी बोलते हैं जैसे .....
मेरा सर चकरा रहा है .....
मेरे बाल खड़े हो रहे हैं .......
शरीर में मेरे कम्पन हो रहा है ......
मेरा गला सूख रहा है ........
मेरी त्वचा में जलन हो रही है ......
मेरी स्मृति खंडित हो रही है ......
यह सब मोह के लक्षण हैं ॥

गीता सूत्र - 2.52
यहाँ इस सूत्र में प्रभु कहते हैं -----
मोह के साथ वैराग्य में कदम रखना असंभव है ॥

गीता सूत्र - 10.3
इस सूत्र में प्रभु कहते हैं ----
मोह वाला ब्यक्ति मुझको नहीं समझ सकता ॥

गीता सूत्र - 4.35
प्रभु कहते हैं ------
मोह क अंत होता है तब जब ज्ञान की किरण फूटती है ॥

गीता सूत्र - 18.72 - 18.73
गीता सूत्र 18.72 अर्जुन का है और सूत्र - 18.73 प्रभु का है लेकीन दोनों काया भाव एक ही है ।
दोनों सूत्र कहते हैं ------
अज्ञान , स्मृति का खंडित होना , भ्रम का उठाना - यह सब मोह में होता है ॥

मोह रहित ब्यक्ति खोजना संभव नहीं ....
मोह को समझा हुआ ब्यक्ति खोजना भी आसान नहीं .....
सभी मोह के शिकार हैं लेकीन मोह से दूर रहना कोई नहीं चाहता .....
मोह और भय सभी जीवों की कमजोरियां हैं ........
मोह की दवा है , मोहन द्वारा बोले गए , गीता - सूत्र ....
जिनको कोई भय की कारण ही नही देखना चाहता ॥

===== ॐ ======

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