भोग - तत्त्व , क्रोध

गीता में क्रोध क्या है ?

पहले हम क्रोध को समझते हैं और बाद में गीता के कुछ सूत्रों को देखेंगे
जिनका सीधा सम्बद्ध क्रोध से है ।

राजस गुण के तत्त्व - काम , कामना , राग , लोभ और क्रोध में एक ही ऊर्जा होती है
जिसको सहारा मिलता रहा है - अहंकार से । क्रोध दो प्रकार के हैं ;
एक में अहंकार परिधि पर होनें से साफ़ - साफ़ दिखता है
और दूसरा क्रोध कुछ इस प्रकार का होता है जिसमें राजस गुण कुछ कमजोर
होनें से अहंकार अन्दर छिपा होता है ।
यह स्थिति क्रोध की तब आती है जब राजस गुण कमजोर हो रहा होता है
और तामस गुण ऊपर उठ रहा होता है ।

कामना और काम की उम्मीद जब खंडित होती दिखती है तब क्रोध उठता है ।
गीता गुण - साधना में , गुण तत्वों की साधना करनी पड़ती है
जिसमें क्रोध की साधना एक कठिन
साधना है ॥
साधना से मनुष्य का स्वभाव बदलता है , स्वभाव से कर्म बदलता है
और कर्म की गुणवत्ता का बदलाव
मनुष्य को रूपांतरित करने लगता है
और धीरे - धीरे
गुण साधक साकार से निराकार में अर्थात
प्रकृति से ब्रह्म की ओर अनजानें में कदम बढानें लगता है ।
गुण साधना का फल है - ज्ञान और ज्ञान है -
वह जो प्रकृति - ब्रह्म के प्रति होश जगाये ॥
क्रोध साधना , आसक्ति , काम , कामना , मोह और अहंकार साधनाओं के साथ - साथ चलती है ,
इसे अलग से करनें की जरुरत नहीं ॥

अगले अंक में देखिएगा गीता की कुछ और बातें ॥

====== ॐ ======

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