गीता में प्रभु कहते हैं ---------

हे अर्जुन ! तूं अपनें कर्म को माध्यम बना कर मेरे रहस्य में झाँक सकते हो ॥
तेरा कर्म तब माध्यम बनेगा जब तेरे कर्म में .........
[क] आसक्ति न हो -----
[ख] कोई कामना न हो ----
[ग] क्रोध की ऊर्जा न हो ---
[घ] मोह की छाया न पड़ती हो , उस कर्म पर ........
[च] क्रोध की अग्नि में बैठ कर कर्म न किया जा रहा हो .......
[छ] और अहंकार के सम्मोहन में कर्म न हो रहा हो .......

गीता के कर्म - योग का सारांश आप ऊपर देख रहे हैं अब सोचिये --------
** जहां हम - आप अभी हैं क्या संभव है की .......
हम से कर्म तो हो रहा हो और जैसा होना चाहिए ठीक वैसे ही हो रहा हो लेकीन .......
उस कर्म के पीछे कोई कारण न हो ?
बिना कारण कौन सा कर्म का होना संभव है ?
बिना कारन कर्म कब हो सकता है ?
क्या उस स्थिति तक पहुंचनें के लिए कुछ करना पड़ेगा ?

आप कर्म - योग के सम्बन्ध में जो बातें ऊपर बताई गयी हैं
उन पर गहराई से सोचें क्यों की
गहराई से सोचनें से ही कुछ मिल सकता है ।
प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं :------
मेरे पास भी वही दिमाक है जो औरों के पास है , फर्क एक है ------
लोग समस्या को पीठ दिखा कर भाग लेते हैं और मैं ----
समस्या में बस जाता हूँ , और एक दिन .....
उसका हल मिल ही जाता है ।
आप भी गीता में बसेरा बनाइये और तब देखिये -----
कान्हा का रंग ....
मोहन की बासुरी की धून .....
तत्त्व - ज्ञानी श्री कृष्ण का कर्म में सम - भाव ....
ज्ञानी श्री कृष्ण के उपदेश ....
और एक दिन , वह भी आ ही जाएगा ,
जब आप को कन्हैया के मार्ग को खोजना नहीं पड़ेगा ॥

===== ॐ =====

Comments

बहुत सुन्दर ज्ञान वर्धक अभिब्यक्ति |

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