कामना के सम्बन्ध में गीता - सूत्र

गीता सूत्र - 6.1
योगासनों से कर्म करनें की ऊर्जा को नष्ट करके कोई योगी - संन्यासी नहीं बन सकता ।
कर्म ऐसा होना चाहिए जिसमें कर्म - फल की पकड़ न हो , तब वह कर्म , योगी - संन्यासी बनाता है ॥

गीता सूत्र - 6.3
कर्म - योग एवं कर्म - संन्यास - दोनों मुक्ति पथ हैं ॥

गीता सूत्र - 4.12
यज्ञों के माध्यम से देव - पूजन करनें से इक्षित कामनाएं पूरी हो सकती हैं ॥
गीता - सूत्र - 4.19
कामना - संकल्प रहित कर्म - योगी , ज्ञानी होता है ॥

गीता सूत्र - 7.20 - 7.22 तक
देव पूजन से कामनाएं पूरी हो सकती हैं ॥

गीता के कुछ सूत्रों के सारांशों को आप के सामनें रखा गया है ,
कुछ इस प्रकार से की गीता को
वैज्ञानिक बुद्धि में बैठाया जा सके , अब आप इसका प्रयोग अपनें जीवन में
किस तरह से करते हैं ,
यह आप के ऊपर है ॥

एक बात और स्पष्ट कर देते हैं :
देव पूजन से इक्षित कामनाओं का पूरा होना क्या है ?

जो मांगो ,वही मिलेगा - ऎसी बात नहीं है , मनुष्य को योगी जीवन जीनें के लिए जिन कामनाओं की
आवश्यकता हो सकती है , केवल उनकी पूर्ति , देव पूजन से संभव है , वह भी यज्ञों के माध्यम से ॥

अब देखिये यज्ञ क्या हैं ?
प्रभु मय होनें के लिए जो उपाय किये जा सकते हैं , जिन पर भोग की छाया न हो , वह यज्ञ हैं ।
गीता में यज्ञ शब्द का अर्थ है श्वास लेनें से भोजन करनें तक की सभी क्रियाएं जिनका सीधा सम्बन्ध

प्रभु से हो ॥
कुछ आओ आगे चलें ......
कुछ मैं कोशिश कर रहा हूँ , और .....
सत मार्ग पर जहां हम - आप ....
मिलेंगे , वह होगा .....
गीता - चौराहा ॥

===== ॐ ======

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