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गीता अमृत - 83

गीता सन्देश ----- [क] मोह के साथ बैरागी बननासंभव नहीं -- गीता - 2.52 [ख] बैराग्य बिना संसार का बोध नहीं ........... गीता - 15.3 [ग] चिंता करता का प्रतिबिम्ब है [घ] करता भाव अहंकार से आता है .............. गीता - 3.27 [च] चिंता और चिता में मामूली सा अंतर है [छ] चिंता चिता को आमंत्रित करती है [j] प्रभावित ब्यक्ति चिंता में रहता है [झ] वह जिसका केंद्र भोग है , वह चिंता में जीता है [क-१] प्रभु केन्द्रित ब्यक्ति चिंता रहित होता है [ख-२] चिंता मुक्त होने के लिए मंदिर एक दवा है [ख-३] मंदिर से वापस आते समय यदि कोई चिंतित है तो उसका मंदिर जाना ब्यर्थ है काम , कामना , क्रोध , राग , लोभ , मोह , भय , अहंकार रहित ब्यक्ति ---- प्रभु केन्द्रित परम आनंद में होता है लेकीन ---- ऐसे लोग दुर्लभ होते हैं ॥ ===== ॐ =====