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गीता मर्म 27

गीता के तीन रत्न ------- [क] गीता सूत्र - 3.3 ज्ञान योगेन सांख्यानां कर्म योगेन योगीनां दो मार्ग हैं ; ज्ञान और कर्म जो प्रभु की ओर चलते हैं ॥ [ख] गीता सूत्र - 13.25 यहाँ प्रभु कहते हैं ...... साधाना के लिए कर्म , ध्यान और ज्ञान - तीन मार्ग हैं जो प्रभु की ओर चलते हैं ॥ [ग] गीता सूत्र - 13.3 क्षेत्र - क्षेत्रज्ञ का बोध , ज्ञान है ॥ कर्म में होश बनाए रखना , ध्यान है और यह होश ज्ञान में पहुंचाता है । प्रभु यह भी कहते हैं [ 4।38 ] ......... सभी योगों का परिणाम है ज्ञान की प्राप्ति , अर्थात ज्ञान कोई किताबों के पढनें से नहीं मिलता यह सत का अनुभव है जो कर्म के माध्यम से मिलता है । प्रोफ़ेसर आइन्स्टाइन कहते हैं ........ ज्ञान दो प्रकार का होता है ; एक सजीव ज्ञान जो चेतना से टपकता है और दूसरा ज्ञान है मुर्दा ज्ञान जो किताबों के पढनें से मिलता है ॥ अनुभव जो बिना शर्त कर्म से मिले , वह है , ज्ञान और जो शर्तों के आधार पर कर्म होते हैं उनका अनुभव अज्ञान देता है ॥ सोचिये और समझिये फिर जो आये वह करिए क्योंकि ....... जो आप करेंगे उसका परिणाम आप को ही मिलेगा ॥ कोई कर्म का परिणाम यदि सुख - दुःख में