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अर्जुन का प्रश्न - 10

अर्जुन कहते हैं------हे प्रभू ! आप स्वयं के बारे में जो कह रहे हैं वह सत्य है , अब मैं मोह रहित हूँ पर आप का ऐश्वर्य रूप देखना चाहता हूँ ----गीता श्लोक 11.1....11.4 तक । उत्तर में हमें गीता श्लोक - 11.5 से 11.30 तक को देखना है , यहाँ इन गीता के 26 श्लोकों में श्री कृष्ण के चार श्लोक, संजय के छः श्लोक और अर्जुन के सोलह श्लोक हैं । अर्जुन अपनें को छिपानें में लगे हैं और मोह ग्रसित की यह पहचान भी है । अर्जुन यह कह तो रहे हैं की आप जो कह रहे हैं वह सत्य है लेकिन उनकी यह बात ऊपर - ऊपर से निकल रही है । अभी ऐश्वर्य रूपों को देखा भी नही क्योंकि उनको अभी दिब्य चक्षु [ गीता- 11।8] मिलनीं हैं और बिना उनके निराकार को कैसे देखा जा सकता है ? अभीं तक ; अध्याय पाँच , सात, आठ , नौ तथा दस में कुल अपनें 114 रूपों को दिखा चुके हैं लेकिन अर्जुन को तृप्ति नहीं मिल पायी है । अर्जुन स्वयं को भ्रम-मोह रहित मानते हैं तथा श्री कृष्ण को परम ब्रह्म भी मानते हैं पर उनके प्रश्न पूछनें का सिलसिला जारी है । आप नें अर्जुन के प्रश्न 09 को देखा--अर्जुन कहते हैं --- आप भूतों के ईश्वर , परम ब्रह्म हैं और यह भी पूछ