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गीता अमृत - 93

स्मृति और हम [क] शिव कहते हैं ---- स्मृति का गुलाम मैं नहीं हूँ , स्मृति मेरी गुलाम है । [ख] अहंकार रहित स्मृति का प्रयोग करता कभी दुखी नही हो सकता और स्मृति में उलझा कभी सुखी नही रहता । [ग] स्मृति को निर्मल बनाना , योग है और स्मृति को निर्मल समझना , भोग है । [घ] स्मृति का एक छोर नरक में और दूसरा छोर परमधाम में खुलता है । [च] स्मृति के आधार पर स्वयं को समझना , ध्यान है और स्मृति में ही बनें रहना , भोग है । [छ] स्मृति के अश्रु को पोछनें वाला , स्वयं को धोखा देता है और उसे देखनें वाला द्रष्टा बन जाता है । [ज] स्मृति के अँधेरे में रोशनी की किरण देखनें वाला , यथार्थ देखता है और उस अँधेरे में रहनें वाला भ्रमित होता है । [झ] भ्रम और संदेह , दोनों नरक के द्वार हैं । [प] संदेह इतना खतरनाक नहीं जितना भ्रम है , संदेह में बाहर जानें का मार्ग दिखता है लेकीन भ्रम में --- ? [फ] जिंदगी की लम्बाई मापनें वाला कभी सुखी नहीं रह सकता । जितनी गहरी कामना होगी , उतना गहरा दुःख होगा जब कामना टूटेगी । ==== ॐ =====