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गीता अमृत - 81

गीता का आदि - अंत धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सव : । मामकाः पाण्डवा श्चैव किम कुर्वत संजय ॥ गीता - 1.1 यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः । तत्र श्रीविर्जयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम ॥ गीता - 18.78 यदि गीता में ये दोनों श्लोक एक साथ होते तो गीता में 700 श्लोक न होते , गीता केवल दो श्लोकों में होता । ध्रितराष्ट्र जी एक अंधे ब्यक्ति हैं , कौरवों के परिवार के प्रधान हैं । धृतराष्ट्र जी की मदद के लिए संजयजी उनके साथ हैं जिनको वेदव्यास [ गीता - 18.75 ] जी द्वारा ऐश्वर्य आँखें मिली हुई है जिनकी मदद से वे सुदूरपूर्व की घटनाओं को सुन और देख सकते हैं संजय से पूंछते हैं - हे संजय ! मेरे और पांडव के पुत्रों के मध्य धर्म क्षेत्र , कुरुक्षेत्र में क्या हो रहा है ? धृतराष्ट्र जी एवं संजय कुरुक्षेत्र में युद्ध भूमि से कुछ दूरी पर रहे होंगे । यहाँ आप बुद्धि - योग में इन बातों पर सोचें ----- [क] गीता के जन्म से पहले भी कुरुक्षेत्र क्यों और कैसे धर्म स्थान था ? [ख] दूर स्थिति संजय कैसे ध्वनि - चित्र बिस्तारको पकडनें में सफल हो रहे हैं जबकी उस समय टेलीविजन टेक्नोलोजी न थी ? [ग] धृतराष