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गीता श्लोक - 14.5

भाग - 01 सत्त्वं रज : तम : इति ---- गुणाः प्रकृति संभवा : । निवध्यंती महाबाहो ---- देहे देहिनं अब्ययम ॥ आइये ! चलते हैं इस श्लोक की यात्रा पर ......... प्रभु गीता अध्याय - 14 में गुण विज्ञान की परम बातों को बताते हुए कहते हैं ----- हे अर्जुन ! इस देह में आत्मा को जोड़ कर रखनें का काम तीन गुण करते हैं । तीन गुण माया से माया में प्रभु के कारण हैं जबकि ..... प्रभु ...... गुनातीत है ----- मायापति होते हुए भी माया से अछूता है ॥ अब श्लोक का भावार्थ तो हुआ समाप्त लेकीन सोच का हो रहा है - प्रारम्भ , कुछ इस प्रकार से ------ गीता बनाना चाहता है ---- गुनातीत ..... मायातीत .... भावातीत और यह भी कह रहा है [ सूत्र - 15.4 में ] की ---- तीन गुण यदि नहीं तो आत्मा देह को छू मंतर कर जाएगा क्योंकि ----- तीन गुण देह में आत्मा को जोडनें का काम करते हैं अरथात जोड़ का माध्यम हैं - तीन गुण ॥ गीता इस बात पर चुप है की ----- जब कोई योगी गुनातीत हो जाता हैतब उसका आत्मा कितनें समय तक उसके देह में रह सकता है ? लेकीन इस सम्बन्ध में ----- परंहंस श्री राम कृष्ण कहते है की ------ मायामुक्त योगी का आत्मा उसके देह के सा...