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गीता अमृत - 35

हम कहाँ से कहाँ जा रहे हैं ? मनुष्य का जीवन भाव आधारित है , भावों के आधार पर वह सोचता है की वह आगे जा रहा है लेकीन क्या यह बात सत है ? भाव गुणों से हैं और सत गुनातीत है [ गीता - 2.16 ] फिर क्या हमारी यात्रा असत की है ? मैक्स प्लैंक जो क्वांटम विज्ञान के जनक हैं और जिनको नोबल पुरस्कार मिला हुआ है एवं जिनको आइन्स्टाइन भी एक महान वैज्ञानिक समझते हैं , उनका कहना है ---विज्ञान की हमारी खोंज हमें अपनें के होनें की ओर खीचती है और ऐसा लगता है की हम आगे नहीं धीरे - धीरे पीछे सरक रहे हैं । हम न तो आगे जा रहे हैं न पीछे जा रहे हैं , हमारी चाह की यात्रा दिशा हींन है , हम भ्रमित हैं , हमें पता नहीं है की हम कहाँ से चले हैं और कहाँ हमें जाना है ? आप न्यूटन से आन्स्ताइन तक - इस 200 वर्षों के विज्ञान को देखिये और तब आप को पता चल जाएगा की इस वैज्ञानिक युग में मनुष्य की दिशा क्या है ? न्यूटन से आइन्स्टाइन तक कौन वैज्ञानिक अतृप्त अवस्था में आखिरी श्वास नहीं भरा है - ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि सब जो खोज रहे थे उनको वह तो मिला नहीं और जो मिला उनको और अतृप्त कर दिया । आइये ! अब देखते हैं गीता के कुछ