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राग - द्वेष

°° गीता - 3.34 °° इन्द्रियस्य इन्द्रियस्य अर्थे रागद्वेषौ ब्यवस्थितौ । तयो : न वशं आगच्छेत् तौ हि अस्य परिपन्थनौ ।। " इन्द्रिय - बिषय राग - द्वेषकी उर्जासे परिपूर्ण हैं , इनका सम्मोहन मनुष्यको प्रभुसे दूर रखता है । " " All five objects of senses have potential energies of attraction and aversion . These two elements are strong barrier in the way of truth - seekers . " ** कर्मयोग - साधनामें बिषय और इन्द्रिय साधना मूल साधन है जो मनमें सात्त्विक उर्जा का संचार करती है । मनुष्यका मन मूल रूप से सात्त्विक अहंकारके ऊपर कालके प्रभावसे उत्पन्न है लेकिन देहमें यह तीन गुणोंकी उर्जासे भरा हुआ होता है । मन आसक्त इन्द्रिय का गुलाम है और बुद्धि मनके अधीन रहती है ।मन - बुद्धि तंत्रसे गुण साधना द्वारा काम से राम की यात्रा होती है । जिस घडी मन - बुद्धिमें केवल सात्त्विक गुणकी ऊर्जा प्रवाहित हो रही होती है उस घडी वह मनुष्य प्रभुमय होता है । ~~~ ॐ ~~~