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गीता की यात्रा

भाग - 03 कर्म के माध्यम से ....... बहुत से नाम हैं ----- कोई क्रिया - योग कहता है ..... कोई कर्म - योग कहता है .... कोई समभाव - योग कहता है .... लेकीन नाम से क्या होगा ? होनें से होता है ॥ कर्म के बिना एक पल के लिए भी कोई जीव धारी नहीं रह सकता । कर्म के लिए मृत्यु - लोक में आना होता है , अन्यथा यहाँ क्या कुछ और है जिसके लिए बार - बार आना पड़ता है । कर्म जबतक कामना से साथ है .... तबतक हम भ्रमित हैं .... और जिस घड़ी कर्म और कामना का रुख एक दूसरे के बिपरीत हो जाता है , समझो अब और अधिक दूर नहीं चलना पड़ेगा , परम धाम आप की ओर खुद चल कर आ रहा है । कामना और कर्म के संग को समझनें के लिए ही तो यहाँ हम सब का आना होता है लेकीन ..... यह बात हम गर्भ से बाहर आते -आते भूल जाते हैं । गीता कहता है : जबतक काम - कामना जबतक क्रोध - लोभ जबतक अहंकार - मैं जबतक मोह - भय .... का प्रभाव मन - बुद्धि पर है ---- प्रभु को भूले हो और ...... रोजाना मंदिर जाते हो प्रभु के लिए नहीं ..... अपनें लिए ॥ जब ..... गुण तत्वों का प्रभाव मन - बुद्धि पर नहीं होता ...... तब .... आप को मंदिर नहीं जाना पड़ता ..... प्रभु खुद आते है...