Posts

Showing posts with the label कागद की नाव बन कर गीता में तैरिये

Gita Sutra - 2.16

नासतो विद्यते भाव: नाभाव: विद्यते सत: । उभयोरपि दृष्ट: अंत: तु अनयो: तत्त्व दर्शिभ: ॥ Dr. Radhakrishnan, sarvpalli says :----- Of the non - existent there is no coming to be ; of the existent there is no ceasing to be . The conclusion about these two has been perceived by the tatvavittu [ man of wisdom ] . aadi guru shankaaraachaarya says ------- real as that in regard to which our consciousness never fails and unreal as that in regard to which our consciousness fails . ramanujaachaarya says ----- the unreal is our body and in it the soul is the real . maadhavaachaaryaa says ----- sat [true ] and asat [ untrue ] these are indications of the presence of nature in duality . यह श्लोक कहता है ----- सत का कोई अभाव नहीं और असत तो एक मन आधारित कल्पना है ॥ अब आप मेरी छोटी सी राय इस सूत्र के सम्बन्ध में देख सकते हैं ....... सत भावातीत है और भाव भरा असत है ॥ यहाँ आप गीता का श्लोक -7.12 को देखिये तब ऊपर के सूत्र का भावार्थ स्वतः स्पष्ट हो सकेगा ..... प्रभु कहते हैं ..... तीन गुण और उनके भाव म...